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अहिंसा और अणुव्रतः सिद्धान्त और प्रयोग पहचानने में बड़ी भूल हो जाती है। आदमी पहचान नहीं कर सकता। अपने भावावेश के कारण मिथ्या और गलत पहचान कर लेता है। हमें उन भनन्तियों से बचना है। गलत पहचान से बचना है और यथार्थ को समझना है। यथार्थ की दृष्टि से चिंतन करें तो योगासनों का ठीक मूल्यांकन होगा। जीवन विज्ञान के साथ योगासन अनिवार्यतया जुड़े हुए हैं और हम इन्हें अनेक दृष्टियों से आवश्यक मानते हैं। कोई व्यक्ति ध्यान करता है। ध्यान का पाचनतंत्र पर असर आता है। पाचनतंत्र थोड़ा कमजोर बनता है। यदि योगासन न करें तो पाचनतंत्र और अधिक बिगड़ जाता है। ध्यान के साथ योगासन करना अत्यन्त आवश्यक है। उससे पाचनतंत्र बिलकुल स्वस्थ बना रहता है।
शारीरिक दृष्टि से, मानसिक दृष्टि से और भावनात्मक दृष्टि से आसनों का अपना महत्त्व है। इसीलिए जीवन विज्ञान का वह एक अनिवार्य अंग बना हुआ है। इन योगासनों के द्वारा किसी प्रकार वृत्ति को और भावनाओं को बदला जा सकता है, यह एक गंभीर अध्ययन का विषय है। उतनी सूक्ष्मता में जाएं या न जाएं, मोटी-मोटी बात समझ में आ जाए तो वृत्ति-परिवर्तन की दिशा में, अहिंसा के विकास की दिशा में यह एक महत्त्वपूर्ण कदम हो सकता है।
2. अहिंसक व्यक्तित्व का निर्माण . पुलिस एकेडमी के परिसर में सूर्योदय होते-होते सैकड़ों-सैकड़ों पुलिस के जवान और ट्रेनिंग देने वाले अधिकारी खड़े हो जाते हैं मैदान में और उनका घंटों प्रशिक्षण चलता है। कुछ सशस्त्र पुलिस वाले और कुछ शस्त्र के बिना अभ्यास करने वाले। यह रोज का रिहर्सल, प्रतिदिन का पूर्वाभ्यास उनका निर्माण करता है कि वे हिंसा से निपट सकें, हिंसक साधनों के द्वारा हिंसा को दबा सकें और हिंसा से हिंसा को निर्मल कर सकें। सैनिक छावनियों में सैकड़ों सैनिकों की पंक्ति लगती है और उन्हें घंटों तक अभ्यास कराया जाता है। सारी पद्धति सिखाई जाती है। हिंसा के लिए कितना प्रयत्न हो रहा है ! मनुष्य के मस्तिष्क को प्रशिक्षित किया जा रहा है कि कैसे शस्त्र का प्रयोग किया जाए? कैसे मारा जाए? कैसे हिंसा से हिंसा का सामना किया जाए ? कैसे आक्रमण किया जाए ? कैसे प्रत्याक्रमण किया जाए ? इतनी सूक्ष्म जानकारी और इतनी ट्रेनिंग है कि वर्षों तक चलती रहती है और उसकी पुनरावृत्तियां कई वर्षों तक होती रहती हैं। कभी उसे पुराना नहीं होने दिया जाता, बासी नहीं होने दिया जाता। इतना नया-नया विकास हो रहा है ! नए प्रक्षेपास्त्र आ गए। नए आग्नेय अस्त्र, नए वाहन आ गए। यदि एक वर्ष पिछड़ जाए, बासी हो जाए, तो वह किसी काम का नहीं रहता। उसे तात्कालिक रहना पड़ता है। आज की नवीनतम तकनीक का ज्ञाता होकर रहना पड़ता है।
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