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________________ अहिंसा का व्यावहारिक स्वरूप सम्राट्, अशोक ने कलिंग में लाखों व्यक्तियों की हत्या की थी। उसने बड़े युद्ध लड़े। हजारों सैनिक मारे गए। बाद में वह बदल गया और इतना बदला कि अशोक एक अहिंसा का दूत बन गया। शांति का संदेश-वाहक बन गया। उसने शांति का संदेश मात्र हिन्दुस्तान में ही नहीं, बाहर भी अनेक देशों में पहुंचाया। यह वही अशोक था जो एक दिन महान् लड़ाकू योद्धा और नर-संहार करने वाला था और वही अशोक शांतिप्रिय और धर्म का वाहक बन गया। यह कैसे हुआ परिवर्तन ? उस समय उसका नाड़ीतंत्र और ग्रन्थि-तंत्र दूसरी ओर काम कर रहा था, हिंसा की ओर उन्मुख था। जब उस पर नियंत्रण हुआ तो वह आमूलचूल बदल गया, शांतिप्रिय हो गया। अहिंसा का पुजारी बन गया। विष निष्कासन का साधन : आसन बदलने के अनेक कारण हैं । हिंसक से अहिंसक होने के अनेक कारण हैं। उन कारणों में योगासन भी एक महत्त्वपूर्ण कारण है। इनके अभ्यास के द्वारा उस तंत्र को बदला जा सकता है जो हिंसा का तंत्र है। उसमें परिवर्तन किया जा सकता है। योगासनों का यह कार्य है और इनके द्वारा यह हो सकता है । थाइरायड पर नियंत्रण करना है तो सर्वांगासन का प्रयोग लाभप्रद है। सर्वांगासन के द्वारा इसे संतुलित बनाया जा सकता है। ये आसन हमारे नाड़ीतंत्र को, ग्रन्थितंत्र को और एमिनो एसिड को भी संतुलित बनाते हैं। आसन शरीर में एकत्रित होने वाले बहुत सारे विजातीय तत्त्वों को भी बाहर करते हैं । शरीर में जो विष जमा होते हैं, उन्हें निकालने का एक उपाय है उपवास तो दूसरा उपाय है योगासन। अहिंसा का सम्बन्ध है आसन से ___ अहिंसा की दृष्टि से इन योगासनों का बहुत बड़ा मूल्य है। हिंसा का संबंध है हमारे नाडीतंत्र से, हिंसा का संबंध है हमारे ग्रन्थितंत्र से और हिंसा का संबंध है अम्लों से। इन सबसे संबंध है। हिंसा पर नियंत्रण करने में आसनों की बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इन्हें पहचानना है। इन्हें जानना है। बहुत बार पहचानने में गलती हो जाती है, आदमी जानबूझकर पहचानने में गलती कर देता है।। ___छोटी सी घटना है। एक युवती खड़ी थी बस स्टेण्ड पर। वहां एक आदमी आया और बोला, बहिनजी ! मैंने आपको कहीं देखा तो है ? वह उसकी बात को ताड़ गई। वह समझ गई कि ऐसा कहने के पीछे इसकी कौन-सी भावना काम कर रही है। उसने कहा, आप ठीक कह रहे हैं। मैं पागल-खाने में नर्स हूं। वह युवक बेचारा सकपका गया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003061
Book TitleAhimsa aur Anuvrat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni, Anand Prakash Tripathi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size12 MB
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