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अहिंसा और अणुव्रतः सिद्धान्त और प्रयोग
समझा हो । एक ओर भयंकर अस्त्रों का निर्माण और दूसरी ओर अहिंसा की चर्चा । ये दोनों हमारे इस विसंगति भरे समाज में और विरोधाभासी जीवन में एक साथ चल रहे हैं। लोग कह रहे हैं कि दो विरोधी बातें एक साथ नहीं हो सकतीं, किन्तु ये दोनों बिल्कुल विरोधी बातें आज पूरे समाज में व्याप्त है। मात्र हिन्दुस्तान में ही नहीं, सारे संसार में दोनों बातें एक साथ चल रही हैं।
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इस स्थिति में जो लोग अहिंसा में आस्था रखते हैं, उनके सामने यह प्रश्नचिह्न है कि क्या वे अहिंसा की चर्चा ही करें ? केवल बात ही करें ? अहिंसा का को उपदेश ही दें या इससे आगे अपना कदम बढ़ाएं ? ऐसा लगता है कि प्रयत्न गहरा नहीं हो रहा है एतदर्थ कुछ विशेष बातें ज्ञातव्य हैं
1. आस्था मत बदलो
एक संन्यासी के सामने भक्त बैठा था । वह बड़ा विचित्र भक्त था। आज एक देवता को मानता, कल दूसरे को मानता और परसों तीसरे को मानता। रोज नए देवता को मानता । हमारे धार्मिक जगत् में देवताओं की भी कमी नहीं है और मानने वालों की भी कमी नहीं है । वह रोज बदलता रहता, पर सफल कहीं नहीं हुआ। एक दिन उसने पूछा- संन्यासी जी ! मैं इतनी भक्ति करता हूं और रोज देवताओं की मनौती मनाता हूं, पर सफलता कभी नहीं मिली। इसका कारण क्या है, आप बतलाएं ? संन्यासी ने उत्तर नहीं दिया। बातचीत हो रही थी। इतने में एक दूसरा भक्त आ गया और आकर बोला कि पहले मेरी सुनें। मुझे जल्दी खेत में जाना है। इनके कोई काम है नहीं। बड़े लोग हैं, पर मैं तो किसान हूं। पहले आप मेरी बात का उत्तर दें। संन्यासी ने कहा- क्या बात है ? उसने कहा- मैंने दस दिन पहले खेत में कुआं खोदा, पानी नहीं निकला, उसके पास ही दूसरा खोदा तो भी पानी नहीं निकला, तीसरा खोदा तो भी पानी नहीं निकला। दस दिन हो गए। खोदता चला जा रहा हूं, पानी नहीं निकल रहा है ? संन्यासी ने कहा- भले आदमी ! इतने गड्ढे क्यों खोदे ? एक ही खोदते और गहराते चले जाते तो पानी अपने आप निकलता। छोटे-छोटे चाहे 100 कुएं खोदो, पानी निकलेगा नहीं। गहरा खोदने पर एक कुआं भी पानी दे देगा और सौ छोटे-छोटे गड्ढे खोदने पर पानी की एक बूंद भी प्राप्त नहीं होगी। उसने सुना। वह बोला- मैं जा रहा हूं, मेरा समाधान हो गया। उसक समाधान ही नहीं हुआ, पहले वाले का भी समाधान हो गया ।
12. संस्कारगत है हिंसा
आस्था को बदलो मत। रोज नए तेवर मत लाओ । आस्था को इतना गहर बनाओ, अपने आप कुएं में पानी निकल आए। मुझे लगता है- अहिंसा में हमारी आस्था तो है पर उस आस्था में गहराई नहीं है । कहीं कोई थोड़ी सी घटना होती है और हिंसा भड़क उठती है। वह सफल हो जाती है। अहिंसा में विश्वास रखने वाले
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