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अहिंसा का व्यावहारिक स्वरूप कौन-सा आहार उपयोगी होता है ? इन सब आधारों पर आहार के विषय में अनेक विधियां और वर्जनाएं दी गई। बताया गया-अमुक प्रकार का भोजन करना चाहिए और अमुक प्रकार का भोजन नहीं करना चाहिए।
आहार की यह चर्चा न तो स्वास्थ की दृष्टि से है और न ब्रह्मचर्य की दृष्टि से । यहां चर्चा का एकमात्र पहलू है अहिंसा। क्या आहार का और हिंसा का कोई सम्बन्ध है ? इस सम्बन्ध की खोज करनी है । सूक्ष्म बात को खोजने में बड़ी कठिनाई आती है, बड़ा श्रम करना होता है।
एक गंजा आदमी हजामत कराने के लिए नाई की दुकान पर गया। उसने नाई से पूछा-हजामत के क्या लोगे? नाई बोला-तीन रुपये। उसने कहासबसे दो-दो रुपये ले रहे हो, फिर मेरे से तीन क्यों ? नाई ने कहा-हजामत के तो दो ही रुपये लूंगा, पर एक रुपया तुम्हारे बाल ढूंढने का लगेगा। गंजे सिर पर बालों को खोजना भी एक समस्या है। उसमें श्रम करना पड़ता है।
हमें सम्बन्ध की खोज करनी है कि आहार में और हिंसा में तथा आहार में अहिंसा में क्या सम्बन्ध है ? यह सम्बन्ध की खोज महत्त्वपूर्ण पहलू है। भोजन से जुड़ी समस्याएं
आदमी जो भोजन करता है, उससे शरीर में अनेक प्रकार के रसायन बनते हैं। भोजन के द्वारा मस्तिष्क शरीर का संचालन करता है। वैज्ञानिकों ने चालीस प्रकार के न्यूरो-ट्रांसमीटरों का पता लगा लिया है। ये सारे भोजन से बनते हैं।
भोजन के द्वारा एमिनो एसिड आदि अनेक प्रकार के एसिड बनते हैं। यूरिक एसिड जहर है। वह भी भोजन से बनता है। हमारी प्रवृत्ति और भोजन के द्वारा अनेक विषैले तत्त्व शरीर में बनते हैं। अतः इस बात को जानना होगा कि किस प्रकार का भोजन करने से क्या बनता है ? जिस भोजन से विष अधिक बनता है, वैसा भोजन करने पर मानसिक समस्याएं पैदा होती हैं, भावनात्मक उलझनें बढ़ती हैं, हिंसा की वृत्ति बढ़ती है। भोजन : दो पहलू
___ प्राचीन काल में भोजन के इस पहलू पर बहुत विचार किया गया कि क्या खाने से क्या होता है। आज के वैज्ञानिक ने इस पहलू के साथ-साथ दूसरे पहल पर भी बहत ध्यान दिया है कि किस प्रकार के भोजन की पूर्ति न होने पर क्या होता है? दोनों पहलू हमारे सामने हैं-(1) किस वस्तु के खाने से क्या होता है ? (2) किस वस्तु की पूर्ति न होने पर क्या होता है ? एक प्राचीन पहलू है और एक नया पहलू है।
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