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________________ अहिंसा और अणुव्रतः सिद्धान्त और प्रयोग जिनकी व्याख्या नहीं की जा सकती, किंतु घटना घटित होती है। क्या हम घटना को झूठा मान लें ? व्याख्या नहीं हो सकती इसलिए क्या घटना को अवास्तविक मान लें? घटना सामने घटित हो रही है, उसे हम कैसे अस्वीकार करेंगे, चाहे हम व्याख्या दे सकें, न दे सकें? अपने भीतर की बहुत सारी घटनाओं की व्याख्या शायद न कर सकें, किन्तु वे सचाइयां हैं। उनमें कोई संदेह नहीं । और वे सचाइयां हमारे सामने प्रगट होती जाती हैं। हम अपने भीतर को देखने का सवाधान प्रयोग करें, सचेष्ट प्रयोग करें, गहराई में जाकर अपने आपको देखें, जीवन में एक संतुलन बनाएं, दोनों पक्षों को बराबर बनाएं। व्यावहारिक पक्ष के बिना हमारा काम नहीं चलता। उसे चलने दें, किंतु उसके साथ-साथ पारमार्थिक पक्ष को भी उजागर करें। जिस दिन व्यावहारिक अहिंसा और पारमार्थिक अहिंसा - इन दोनों का संतुलन बनेगा उस दिन 'मनुष्य में हिंसा का जन्म कैसे हुआ' इसका उत्तर दिया जा सकेगा तथा हमारी जीवन शैली के लिए अहिंसा की उपादेयता को समझा जा सकेगा। 2.2 अहिंसा और आहार जीवन के दो आधारभूत तत्त्व हैं - श्वास और आहार । श्वास का अर्थ है जीवन । आहार का अर्थ है जीवन । इन दोनों के बिना जीवन चलता नहीं । श्वास बंद, जीवन की यात्रा सम्पन्न । आहार बन्द तो कुछ ही दिनों में जीवन की यात्रा संपन्न । मनुष्य ही नहीं, प्रत्येक प्राणी आहार और श्वास के बल पर जीता है। एक छोटे से छोटा वनस्पति का प्राणी भी श्वास लेता है, आहार लेता है, इसीलिए जीता है। आहार जीवन का आधारभूत तत्त्व है । 24 आहार से जुड़े कुछ तत्त्व आहार के विषय में विमर्श होता रहा है। इस विमर्श के अनेक कोण रहे हैं। स्वास्थ्य की दृष्टि से आहार पर विचार किया गया कि स्वस्थ व्यक्ति का आहार कैसा होना चाहिए ? इस पर बहुत सूक्ष्मता से चिन्तन किया। ऋतु के आधार पर भी मीमांसा प्राप्त है। सर्दी की ऋतु का आहार एक प्रकार का होता है और गर्मी ऋतु का आहार भिन्न प्रकार का होता है। वर्षा ऋतु का आहार इन दोनों से भिन्न प्रकार का होता है। इससे भी सूक्ष्म विचार किया गया कि ये तो वर्ष में आने वाली तीन ऋतुएं हैं, पर एक दिन में भी ये तीनों ऋतुएं आती हैं। प्रातःकाल का आहार कैसा होना चाहिए ? मध्याह्न का आहार कैसा होना चाहिए ? सायंकालीन आहार कैसा होना चाहिए ? इस प्रकार अनेक पहलुओं से आहार पर चिन्तन किया गया। आहार का सम्बन्ध ब्रह्मचर्य के साथ भी जोड़ा गया। विचार किया गया कि ब्रह्मचारी का आहार कैसा होना चाहिए ? सात्त्विक वृत्ति में जीने वाले का आहार कैसा होना चाहिए ? व्यक्ति की भावनात्मक धारा को सात्त्विक रखने में For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.003061
Book TitleAhimsa aur Anuvrat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni, Anand Prakash Tripathi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size12 MB
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