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अनुप्रेक्षाएं
"मैं नियंत्रण की क्षमता का विकास करूंगा, जिससे मैं अनावश्यक हिंसा से बच सकता हूं।"
__10 मिनट 5. महाप्राण-ध्वनि के साथ प्रयोग सम्पन्न करें 2 मिनट
स्वाध्याय और मनन (अनुप्रेक्षा के बाद स्वाध्याय और मनन आवश्यक है।) अहिंसा की संभावना
क्या अहिंसा-प्रधान धर्म समाज के लिए उपयोगी हो सकता है? समाज का आधार है-आर्थिक संघटन–अर्थ और पदार्थ । सामाजिक प्राणी के लिए यह कैसे संभव हो सकता है कि वह खेती, व्यवसाय का अर्जन न करे और यह भी कैसे संभव हो सकता है कि वह अपने अधिकृत पदार्थों या अधिकारों की सुरक्षा न करे। अर्थ और पदार्थ का अर्जन और संरक्षण हिंसा के बिना नहीं हो सकता? ये वे प्रश्न हैं जिनका अहिंसा को सबसे पहले सामना करना पड़ता है किन्तु इस मामले में अहिंसा पराजित नहीं है। जैन तीर्थंकरों ने उसका प्रारम्भ आवश्यकता के स्तर पर नहीं किया किन्तु संकल्प के स्तर पर किया। उन्होंने कहा कि तुम अहिंसा का प्रारम्भ उस बिन्दु पर करो जहां तुम्हारे जीवन की अनिवार्यताओं में बाधा न आये और तुम क्रूर व आक्रामक भी न बनो। आवश्यकता और क्रूरता एक नहीं है। इस विश्लेषण ने अहिंसा का पथ प्रशस्त कर दिया। मनुष्य के लिए यह संभावना उत्पन्न कर दी कि तुम घर में रहते हुए भी अहिंसक बन सकते हो। इस व्यावहारिक मार्ग से मनुष्य को मनुष्य बनने का अवसर मिला और उसकी सामाजिकता भी कुण्ठित नहीं हुई । उसे धार्मिक बनने का मौका मिला और उसके व्यवहार का भी लोप नहीं हुआ।
कुछ लोगों का अभिमत है कि अहिंसा ने सामाजिक व्यक्ति को कायर बना दिया। मैं इस विचार से सहमत नहीं हूं । मेरी दृष्टि में उसने मनुष्य को कोमल बना दिया। उसकी क्रूरता का परिमार्जन कर दिया । यदि मनुष्य जंगली जानवर की भांति एक-दूसरे पर झपटता रहे तो अहिंसा की संभावना ही नहीं होती । समाज के लिए अहिंसा अत्यन्त उपयोगी है। मैं यह नहीं कहता कि समाज में उसका उपयोग असीम है, फिर भी जिस सीमा तक उसकी उपयोगिता है उसे हम क्यों नहीं स्वीकार करें ?
मैं हिंसा और संग्रह को भिन्न नहीं मानता। ये दोनों एक ही वस्त्र के दो छोर हैं । आप संग्रह करें और हिंसा से बचना चाहें, यह कैसे संभव हो सकता है? हिंसा का सूत्र है-जितना संग्रह, उतनी हिंसा। और अहिंसा का सूत्र है-जितना असंग्रह, उतनी अहिंसा।
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