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अहिंसा और अणुव्रतः सिद्धान्त और प्रयोग
अहिंसा का पराक्रम
कुछ लोग सोचते हैं कि अहिंसा ने समाज को कायर बनाया, फिर सामाजिक स्तर पर उसके उपयोग का आग्रह क्यों ? मुझे लगता है कि यह सोचना नितांत भ्रांतिपूर्ण है | अहिंसा और कायरता में कोई संबंध नहीं है । भीरू आदमी अहिंसक नहीं हो सकता । जो आदमी मौत से डरता है, वह अहिंसक नहीं हो सकता । अहिंसक वह होता है जो अभय है और जिसे मौत का भय नहीं सताता । फिर यह कैसे माना जाए कि अहिंसा व्यक्ति या समाज को कायर बनाती है । यह भ्रम इसलिए उत्पन्न हुआ कि सही अर्थ में अहिंसा में विश्वास नहीं करने वाले धार्मिकों ने अपनी दुर्बलता को अहिंसा की ओट में पाला-पोसा । दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि उग्र हिंसावादी अहिंसा की अनुपयोगिता प्रमाणित करने के लिए यह प्रचारित करते हैं कि अहिंसा समाज को कायर बनाती है ।
हिन्दुस्तानी इतिहास में मौर्य और गुप्तकाल को स्वर्णयुग कहा जाता है। उस युग में सम्राट् चन्द्रगुप्त और सम्राट् अशोक जैसे व्यक्तियों ने अहिंसा को वह प्रतिष्ठा दी, जो कि साधारण व्यक्ति दे नहीं सकता। हम इस ऐतिहासिक तथ्य को भुला देते हैं कि हिन्दुस्तान पारस्परिक घृणा और जातीय संघर्ष से कायर बना, पारस्परिक फूट और पारस्परिक आक्रमण से कायर बना और इन्हीं कारणें से वह परतंत्र बना । कहां वह मौर्य युग का बृहत्तर भारत और कहां विक्रम की दसवीं शताब्दी के बाद का परतंत्र भारत । भारत की परतन्त्रता कायरता से आयी और वह कायरता सामाजिक शक्ति के विघटन से आयी। एक संस्कृति में पले लोगों में फूट के बीज बोकर क्या कोई भी राज- - नेता या धर्मनेता समाज या राष्ट्र को शक्तिशाली बनाये रख सकता है ? कभी नहीं रख सकता । हमें स्थिति का यथार्थ मूल्यांकन करना चाहिए। जो विद्वान् हिन्दुस्तान की परतन्त्रता के लिए अहिंसा को दोषी ठहराते हैं, वे सचमुच स्वप्नलोक में हैं। यह तथ्य जितना सैद्धान्तिक है, उतना ही ऐतिहासिक है कि मारने वाला उतना वीर नहीं होता जितना कि मरने से नहीं डरने वाला होता है। दूसरी बात यह है कि जैनों और बौद्धों का हिन्दुस्तानी राजनीति पर लम्बी अवधि तक प्रभुत्व रहा। उन्होंने राष्ट्र की सुरक्षा और उसका विस्तार किया। जिस समय हिन्दुस्तान परतंत्र हुआ उस समय उस पर जैनों और बौद्धों का प्रभुत्व नहीं था । परतंत्र हिन्दुस्तान के अनेक राज्यों में जैन लोग दण्डनायक और सेनानायक रहे और उन्होंने अपने राज्य को अनेक आघातों से उबारा। इसलिए इस आरोप में सचाई प्रतीत नहीं होती कि अहिंसा समाज को कायर बनाती है।
अहिंसा
धार्मिक क्षेत्र में अहिंसा का सबसे पहला स्थान है। अन्य व्रत तो अहिंसा को पुष्ट करने के लिए हैं ।
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