SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 243
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 224 अहिंसा और अणुव्रतः सिद्धान्त और प्रयोग शोषण-परिहार का सिद्धांत आज शोषण की समस्या गंभीर है। यह स्वर उभर रहा है-शोषण नहीं होना चाहिए, श्रम का उचित मूल्य मिलना चाहिए। यदि हम अतीत को पढ़ें तो हमारा निष्कर्ष होगा-शोषण का विरोध सबसे पहले भगवान् महावीर ने किया। महावीर ने कहा-किसी के भक्तपान का विच्छेदन मत करो। जो व्यक्ति जिसे पाने का हकदार है, उसे तुम मत छीनो । वह श्रम करता है और तुम उसका हक छीन लेते हो, यह न्याय नहीं है। शोषण के परिहार का महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त है आत्म-तुला का सिद्धांत । किसी की आजीविका मत छीनो, किसी का शोषण मत करो। यदि इस सिद्धान्त पर अमल होता तो हड़ताले नहीं होती, मिलें बन्द नहीं होतीं। अहिंसा के माध्यम से मानवीय चेतना को जगाने का जितना काम महावीर ने किया उतना किसी ने किया या नहीं, यह भी अनुसंधान का विषय है। आचारांग सूत्र में अहिंसक समाज-रचना के सूत्र भरे पड़े हैं। क्रान्ति सूत्र है आचारांग। उसका एक सूत्र है-आदमी तराजू के एक पल्ले में अपने को बिठाए, दूसरे पल्ले में सामने वाले प्राणी को बिठाए और दोनों को समदृष्टि से तौले, आत्म-तुला की अन्वेषणा करे।महावीर के शब्दों में यही सच्ची खोज और अन्वेषणा है। 7. अहिंसा-अणुव्रत की अनुप्रेक्षा प्रयोग-विधि 1. महाप्राण ध्वनि 2 मिनट 2. कायोत्सर्ग 5 मिनट 3. दर्शन-केन्द्र पर ध्यान केन्द्रित कर अहिंसा अणुव्रत की अनुप्रेक्षा करें+ "मैं किसी भी निरापराध प्राणी की हत्या नहीं करूंगा।" + "मैं किसी पर आक्रमण नहीं करूंगा।" + "मैं हिंसात्मक उपद्रवों में भाग नहीं लूंगा।" इस शब्दावली का नौ बार उच्चारण करें। 10 मिनट 4. अनुचिन्तन करें "नैतिकता सामाजिक जीवन का अनिवार्य तत्व है। नैतिकता का विकास करने के लिए व्रत अथवा नियंत्रण की क्षमता का विकास आवश्यक है। "नियंत्रण के अभाव में अनावश्यक हिंसा से बचा नहीं जा सकता। "जिसकी नियंत्रण की क्षमता मजबूत होती है, वह व्यक्ति और समाज शक्तिशाली बनता है। ___ "जिसकी नियंत्रण की क्षमता कमजोर होती है, वह व्यक्ति और समाज कमजोर बनता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003061
Book TitleAhimsa aur Anuvrat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni, Anand Prakash Tripathi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy