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________________ अनुप्रेक्षाएं में यह भाव जागे -- विवशता के कारण मैं वनस्पति जगत् का उपयोग कर रहा हूं' मेरी विवशता के लिए वह मुझे क्षमा करे। यह भाव कृतज्ञता का भाव होगा। 221 महत्त्पूर्ण स्वीकृति गुरु-धारणा करते समय एक जैन श्रावक यह नियम स्वीकार करता है - मैं बड़े वृक्ष को नहीं काटूंगा । यह बहुत महत्त्वपूर्ण स्वीकृति है । विश्नोई समाज ने पेड़ों के लिए जो काम किया है, वह बहुत अद्भुत है। विश्नोई समाज में यह मान्यता प्रचलित है-एक पेड़ को काटना दस लड़कों को मारने के समान है । विश्नोई समाज के पुरखों ने पेड़ों की सुरक्षा के लिए अपने जीवन का बलिदान कर दिया। जब जोधपुर के राजा ने पेड़ कटवाने शुरू किए तब विश्नोई समाज के लोगों ने सत्याग्रह कर दिया। उन्होंने कहा- पहले हम मरेंगे फिर पेड़ कटेंगे। पेड़ को विनाश से बचाने के लिए अनेक लोगों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी। हम इस सचाई को समझें- जितने पेड़ कटेंगे उतना ही मनुष्य का जीवन असुरक्षित बनेगा। पेड़ काटने का अर्थ है-हिंसा और अपने सहयोगी का विनाश। पेड़ काटने से हिंसा तो होती है किन्तु उसके साथ-साथ जीवन को भी खतरा पैदा हो जाता है। वनस्पति और मनुष्य- दोनों का अस्तित्व इतना जुड़ा हुआ है कि उन्हें अलग नहीं किया जा सकता। आज मनुष्य इस सचाई को अनदेखी कर रहा है। वह लोभ के कारण बिना सोचे-समझे वनस्पति जगत् के साथ घोर अन्याय और क्रूरता का व्यवहार करता चला जा रहा है और यही उसके लिए समस्या का कारण बन रहा है । क्रूरता की पृष्ठभूमि शक्तिशाली आदमी कमजोर को मारता है, यह एक सिद्धान्त-सा बन रहा है। मनुष्य को सोचने की शक्ति मिली है किन्तु वह प्राणियों के साथ जो अन्याय कर रहा है क्या वह संगत है ? मनुष्य के शौक ने कितनी क्रूरता को जन्म दिया है, इसकी कल्पना नहीं की जा सकती। थोड़े से आराम, बड़प्पन और सौन्दर्य के लिए कितना अन्याय किया जा रहा है। लोग कहते हैं- आतंकवाद बढ़ रहा है। आदमी को तिनके की तरह मारा जा रहा है। यदि आदमी के चरित्र को देखें तो और क्या परिणाम आ सकता है ? यह एक चक्र है । यदि हजार आदमी क्रूरता करेंगे तो लाखों आदमी क्रूर बन जाएंगे। क्रूरता के पीछे क्या है ? इस पर हम ध्यान केन्द्रित करें। उसकी पृष्ठभूमि में है - रुपया, आराम, सुन्दर दीखने की प्रवृत्ति और बड़प्पन की भावना । समाचार-पत्र में पढ़ा- कस्तूरी मृग समाप्त होते चले जा रहे हैं। पश्चिमी देशों में इसकी मांग बहुत बढ़ गई है। अब इसका उपयोग शस्त्रों में होने लगा है, इसीलिए इसका मूल्य बढ़ गया है। मृगों को मारने वाले अवैध तरीके से मारने लगे हैं। कस्तूरी मृग का अस्तित्व ही विलुप्त-सा हो गया है। शिकारी के लिए यह एक व्यवसाय है। रुपये के लोभ ने, प्रसाधन और सौन्दर्य के लोभ जिस क्रूरता को जन्म दिया है, वह दिल को दहलाने वाली है। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003061
Book TitleAhimsa aur Anuvrat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni, Anand Prakash Tripathi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size12 MB
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