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अहिंसा और अणुव्रतः सिद्धान्त और प्रयोग आप एक निश्चित स्थान में, निश्चित समय में प्रतिदिन जाप करें। एक वर्ष प्रयोग करके देखें कि आपकी संकल्प-शक्ति कितनी बढ़ जाती है। ठीक वही समय और वही स्थान। निश्चित देश और निश्चित काल । उसका प्रयोग करें तो स्वयं अनुभव होगा कि मेरी आन्तरिक शक्ति, क्षमता और संकल्प-शक्ति कितनी बढ़ गई। जो सोचता हूं वही कर लेता हूं, यह वचन-सिद्धि का बहुत बड़ा उपाय है । वचन-सिद्धि का अर्थ है कि मुंह से जो बात निकल जाती है वह बात हो जाती है। यह वचनसिद्धि का बहुत सुन्दर उपाय है कि तीन वर्ष तक कोई आदमी एक निश्चित समय पर अपने इष्ट मंत्र का जप करे तो उसकी वचन-शक्ति में परिवर्तन आ जायेगा।
हमारी चेतना बदलती है, भीतर से कुछ बदलता है, ऐसा परिवर्तन महसूस होता है। देश और काल की नियमितता से भी परिवर्तन घटित होता है। ठीक समय पर काम करना और उसी समय वही काम करना जो जिस समय करना है।
संकल्प-शक्ति के विकास के लिए तीन बातें बहुत आवश्यक हैं-- इन्द्रिय-विजय, कष्ट-सहिष्णुता और मन की एकाग्रता । जिस व्यक्ति में ये तीन बातें नहीं होतीं, उसकी संकल्प-शक्ति टूट जाती है। एक आदमी संकल्प करता है कि मैं ऐसा नहीं करूंगा, नहीं करूंगा। पर इन्द्रियों पर काबू नहीं। कोई चीज सामने आयी
और तत्काल संकल्प टूट जाता है। बीमार आदमी सोचता है कि इस चीज से मुझे बड़ा कष्ट हुआ, कल यह मैं नहीं पीऊंगा, नहीं खाऊंगा। किन्तु सामने आया तो कल की बात ही रह गई, आज की बात नहीं बनी। क्योंकि इन्द्रियों पर संयम नहीं है। संकल्प-शक्ति के विकास के लिए प्रथम शर्त है--इन्द्रियों का संयम।
दूसरी बात है--कष्ट-सहिष्णुता । थोड़ा-सा कष्ट आया और संकल्प टूट गया। कष्ट-सहिष्णुता जिसमें नहीं होती, उसकी संकल्प-शक्ति मजबूत नहीं होती।
तीसरी बात है--मन की अचपलता। संकल्प किया, पर मन इतना चपल होता है कि मन में तरंग उठी और बात समाप्त । मन की चपलता होती है, तो संकल्प-शक्ति विकसित नहीं होती।
ये तीन बातें होती हैं तो संकल्प-शक्ति का विकास हो सकता है और बहुत अच्छा हो सकता है।
संकल्प-शक्ति के विकास के लिए एक और महत्वपूर्ण प्रयोग है(Suggestion या Auto-Suggestion) का । बहुत महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। पश्चिम के लोगों ने एक चिकित्सा की प्रणाली का विकास किया है-आटोजेनिक चिकित्सापद्धति । आटोजेनिक चिकित्सा-पद्धति में स्वतः प्रभाव डालने वाली बात होती है। वे कल्पना करते हैं और कल्पना के सहारे वैसा अनुभव करते हैं । यह आटोजेनिक प्रणाली, इसे योग की भाषा में भावनात्मक प्रयोग कहा जा सकता है। हमारे यहां भावना का प्रयोग
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