SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 234
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 215 अनुप्रेक्षाएं सफलता का सूत्र है--'जिस प्रशस्त कार्य को करना हो, पहले उसका संकल्प करो--दृढ़ निश्चय करो। फिर उस पर ध्यान केन्द्रित करो। सफलता अपने आप वरण करेगी।' 'अनिश्चय में रहना विफलता को निमंत्रण देना है।' 7. महाप्राण ध्वनि के साथ प्रयोग सम्पन्न करें। 2 मिनट स्वाध्याय और मनन (अनुप्रेक्षा के बाद स्वाध्याय और मनन आवश्यक है।) संकल्प शक्ति मनुष्य बदलता है, चेतना बदलती है। उसका एक शक्तिशाली माध्यम हैसंकल्प-शक्ति । आज तक जो विकास हुआ है उसमें संकल्प शक्ति का बड़ा योगदान रहा है। आदिकाल से आज तक मनुष्य ने जितनी घाटियां पार की हैं, जो नहीं था उसे प्राप्त किया है, जितना विकास किया है, उसमें संकल्प-शक्ति का बड़ा योगदान रहा है। संकल्प-शक्ति के सहारे वह बदलता गया, बदलता गया, उसके शरीर का आकार बदला है, प्रकार बदला है, इन्द्रियां बदली हैं, चेतना बदली है। पूरा विकास होता गया है। इच्छाशक्ति, संकल्पशक्ति और एकाग्रता की शक्ति--ये तीन हमारी बड़ी शक्तियां हैं। ये तीन मनुष्य की दुर्लभ विशेषताएं हैं और इन शक्तियों के आधार पर ही आज के विकास के बिन्दु पर पहुंचे हैं। संकल्प-शक्ति हमारी बहुत बड़ी शक्ति है। संकल्प-शक्ति का अर्थ है--कल्पना करना और उस कल्पना को भावना का रूप देना, दृढ़ निश्चय करना। जब हमारी कल्पना उठती है और वह कल्पना दृढ निश्चय में बदल जाती है, तो हमारी कल्पना संकल्प-शक्ति बन जाती है। पहले-पहल कल्पना उठती है, ऐसा हो सकता है, ऐसा होना चाहिए। यह हमारी कल्पना है। कल्पना में इतनी ताकत नहीं होती है। उसमें इतना बल नहीं होता । जब कल्पना को पुट लगती है, उसकी ताकत बढ़ जाती है। दूसरी बात है--व्रत की शक्ति का विकास। भारतीय सभ्यता और संस्कृति में व्रत का बहुत बड़ा महत्त्व था। हर धर्म ने व्रत की शक्ति का विकास किया था। व्रतों का बड़ा महत्त्व हुआ। सबने व्रतों का विधान किया और सब लोग व्रतों को स्वीकार करते। यहां दीक्षा शब्द बहुत प्रचलित रहा । दीक्षा का अर्थ ही था--व्रतों का स्वीकार । यज्ञोपवीत से लेकर विभिन्न संस्कारों में, संन्यास में, मनित्व में, कहीं भी कोई जाये, व्रत का विधान उसके लिए होता था। आज वह व्रत का विधान भी छूट गया। व्रत की शक्ति भी कम हो गई। - संकल्प-शक्ति के विकास के लिए तीसरा उपाय है--नियमितता। आप छोटा-सा प्रयोग करें ।आपका इष्ट मंत्र अलग-अलग हो सकता है। मैं आपको कोई मंत्र नहीं बताऊंगा । जो आपका इष्ट हो और जिस पर आपका विश्वास हो, उसका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003061
Book TitleAhimsa aur Anuvrat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni, Anand Prakash Tripathi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy