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________________ अहिंसा और अणुव्रतः सिद्धान्त और प्रयोग आज असहिष्णुता चरम सीमा तक पहुंच चुकी है। दो भाई हैं। दो मित्र हैं । तब तक भाईचारा और मित्रता निभती है जब तक आपस में कुछ कहा सुना नहीं जाता । मन के प्रतिकूल कहते ही भाईचारा टूट जाता है। मित्रता समाप्त हो है। शिष्य गुरु के प्रति विनीत होता है, समर्पित होता है। विनय और समर्पण तब तक अखण्ड रहती है जब तक गुरु शिष्य को कुछ कठोर शब्द नहीं कहते और शिष्य का स्वार्थ संपादित होता रहता है। कुछ कहा, कुछ ताप दिया कि शिष्य मोम की तरह पिघलकर बिखर जाएगा, टूट जाएगा। 214 अनुशासन तब तक सम्भव नहीं है, जब तक सहिष्णुता का विकास नहीं होता। हम अनुशासन लाने का बहुत प्रयत्न करते हैं । हम चाहते हैं कि अनुशासन का विकास हो, विद्यार्थी और पुलिसकर्मी में अनुशासन आए, मजदूर और कर्मचारी में अनुशासन आए। हर क्षेत्र में अनुशासन बढ़े। सब चाहते हैं, किन्तु वे इस आधारभूत तत्त्व को भूल जाते हैं कि सहिष्णुता की शक्ति का विकास हुए बिना अनुशासन का विकास नहीं हो सकता। इसलिए हमारा सारा प्रयत्न सहिष्णुता की शक्ति को विकसित करने के लिए होना चाहिए। तब अनुशासन स्वयं फलित होगा । 5. संकल्प - शक्ति की अनुप्रेक्षा प्रयोग-विधि 1. महाप्राणध्वनि 2 मिनट 2. कायोत्सर्ग 5 मिनट 3. तैजस केन्द्र पर अरुण (बाल-सूर्य जैसे ) रंग का ध्यान (क) अनुभव करें- अपने चारों ओर अरुण रंग के परमाणु फैले हुए हैं । उगते हुए (बाल) सूर्य जैसे अरुण रंग का श्वास लें । अनुभव करें- प्रत्येक श्वास के साथ अरुण रंग के परमाणु भीतर प्रवेश कर रहे हैं । 3 मिनट (ख) अब अपने चित्त को तैजस केन्द्र पर केन्द्रित करें और वहां पर अरुण रंग का ध्यान करें। 3 मिनट 4. विशुद्धि केन्द्र पर ध्यान अपने चित्त को विशुद्धि केन्द्र (कण्ठ के मध्य भाग) पर केन्द्रित करें। आगे से पीछे सुषुम्ना - शीर्ष तक चित्त के प्रकाश को फैलाएं। पूरे भाग में होने वाले प्राण के प्रकम्पनों का अनुभव करें। बीच-बीच में श्वास - संयम का प्रयोग करें। 3 मिनट 5. तैजस केन्द्र पर ध्यान केन्द्रित कर अनुप्रेक्षा करें "मेरी संकल्प - शक्ति का विकास हो रहा है।" - इस शब्दावली का नौ बार मानसिक जप करें। 3 मिनट 6. अनुचिन्तन करें " दृढ़ निश्चय के बिना कोई व्यक्ति सफल नहीं हो सकता।" Jain Education International - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003061
Book TitleAhimsa aur Anuvrat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni, Anand Prakash Tripathi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size12 MB
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