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________________ अनुप्रेक्षाएं होती, मैत्री का भाव स्थायी नहीं हो सकता। दूसरी बात है, शक्ति के बिना कलुषता का निरसन भी नहीं हो सकता । कमजोर आदमी दिन में सौ बार मैत्री का संकल्प करता है और शत्रुता के भाव को मन से निकाल देता है । फिर परिस्थिति आती है और उसके चित्त पर शत्रुता का भाव छा जाता है। यह चित्त का आकाश कभी निर्मल नहीं होता । उसको निर्मल करने के लिए सहिष्णुता की शक्ति चाहिए, निर्मलता की शक्ति चाहिए । खमतखामणा का वास्तविक अर्थ खमतखामणा आराधना का महत्त्वपूर्ण सूत्र है । उसका तात्पर्य है कि किसी भी व्यक्ति के प्रति तुम्हारे मन में असहिष्णुता का भाव आ जाए, कलुषता का भाव जाग जाए, उसे ज्ञात हो या नहीं, वह जाने या न जाने, किन्तु तुम अपनी ओर से क्षमा मांग लो, सहन कर लो। अपनी मैत्री मत खोओ। उसे शत्रु मत मानो । यह महान् व्यक्तित्व की प्रक्रिया है । वह इतना विराट् बन जाता है कि उसके सामने फिर शत्रु जैसा कोई व्यक्ति नहीं होता । भगवान् महावीर को देखें । अन्यान्य साधकों को देखें। वे सब अपनी साधना के द्वारा ही महान् बने थे । इकोलाजी : अहिंसा-जगत् का विकास आराधना का कितना महत्त्वपूर्ण सूत्र है -- मैत्री का विकास | मैत्री के विकास के लिए शक्ति का विकास और शक्ति के विकास के लिए सहिष्णुता का विकास, निर्मलता का विकास। जब ये सब विकास हमारी चेतना में घटित होते हैं तब दृष्टि का रूपान्तरण होता है। हम तब सचमुच इकोलॉजी के सिद्धान्त की परिधि में आ जाते हैं। आज की इस नई शाखा का विकास जितना अहिंसा के जगत् में हुआ है, आज तो उसका पुनरावर्तन हो रहा है बहुत ही थोड़े अंशों में । परस्परावलम्बन, सहयोग और परस्पर निर्भरता -- ये सब प्रकृति के कण-कण से जुड़े हैं। ये सब अहिंसा के सिद्धांत में बहुत विकसित हुए हैं। 2. करुणा की अनुप्रेक्षा प्रयोग - विधि 1. महाप्राण ध्वनि . कायोत्सर्ग 2 मिनट 5 मिनट 3. गुलाबी रंग का श्वास लें। अनुभव करें। प्रत्येक श्वास के साथ गुलाबी रंग के परमाणु भीतर प्रवेश कर रहे हैं । 3 मिनट 4. आनन्द - केन्द्र पर ध्यान केन्द्रित कर अनुप्रेक्षा करें- 2. 197 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003061
Book TitleAhimsa aur Anuvrat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni, Anand Prakash Tripathi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size12 MB
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