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________________ 196 अहिंसा और अणुव्रतः सिद्धान्त और प्रयोग किन्तु हमने यह रूढ़ धारणा बना ली है कि आदमी पर मृदुता से शासन नहीं किया जा सकता। इस धारणा से मानवीय संबंधों में कटुता आयी है। एक आदमी दूसरे आदमी को शत्रु या पराया मानता चला जा रहा है। सरस जीवन की प्रकिया--मृदुता जीवन की सफलता का सूत्र है--सरसता । मृदु व्यवहार जीवन की सरसता का सूचक है। जिसका व्यवहार कठोर होता है, उसका जीवन सरस नहीं हो सकता । वह स्वयं भी सरस नहीं हो सकता और दूसरों में भी सरसता नहीं भर सकता। जिसका व्यवहार मृदु होता है वह स्वयं सरस होता है और दूसरों में भी सरसता भरता है। आचार्य भिक्षु के समय की बात है। मुनि भिक्षा लेकर आए। भिक्षा दिखाई। एक पात्र में चने की दाल और मूंग की दाल मिश्रित थी। आचार्य भिक्षु ने मुनि से कहा, दोनों दालों को मिलाकर क्यों लाये ? अलग-अलग पात्र में लाना चाहिए। मुनि ने सहज भाव से उत्तर दिया- दाल दाल होती है। क्या अन्तर आता है? साथ ले आया। आचार्य भिक्षु ने कहा, 'चने की दाल बीमार को नहीं दी जा सकती।मूंग की दाल बीमार को दी जा सकती है। तुमने गलती की है।' आचार्य भिक्षु ने उसे उलाहना दिया। मुनि को बात खटक गयी। वे भोजन न कर, सो गये। भिक्षु भोजन मंडली में बैठे। साधु को उपस्थित न देखकर पूछताछ की। पता चला कि वे सो रहे हैं। भिक्षु व्यवहार-पटु थे। मनोवैज्ञानिक थे। उन्होंने मुनि के मन को पढ़ा और जोर से पुकारा 'अरे! सोते-सोते दोष मेरा देख रहा है या अपना?' इतना सुनते ही मुनि का गुस्सा शांत हो गया। वे उठे, बाहर आए, भिक्षु को वंदना कर बोले, 'दोष तो अपना ही देख रहा था।' बस, सारा वातावरण सजीव हो गया। _आचार्य भिक्षु के शब्दों ने उनमें सरसता भर दी। मुनि सरसता से अभिभूत हो गए। सरसता वही भर सकता है जिसके जीवन-व्यवहार में सरसता हो। सरसहीन व्यक्ति का व्यवहार मृदु नहीं हो सकता। वह कभी दूसरों को सरस नहीं बना सकता। मैत्री सरसता का घटक है। जीवन-विकास के सूत्रों की यह संक्षिप्त चर्चा है। जीवन को सफल बनाने के लिए हम जीवन को विस्तार दें, जीवन में छाया उपलब्ध करें, सौरभ और सरसता को प्राप्त करें। ऐसा होने पर जीवन-वृक्ष ऐसा सरस बन जाएगा कि वह आसपास को सुरभिमय बना सकेगा और प्रत्येक व्यक्ति रस से आप्लावित हो सकेगा। मैत्री की आराधना : शक्ति की आराधना शक्ति के बिना मैत्री नहीं हो सकती। मैत्री की आराधना का अर्थ हैशक्ति की आराधना । सहिष्णुता एक शक्ति है। शक्ति की जब तक उपासना नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003061
Book TitleAhimsa aur Anuvrat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni, Anand Prakash Tripathi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size12 MB
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