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कायोत्सर्ग
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स्वास्थ्य पर प्रभाव- आसन का सीधा प्रभाव मस्तिष्क, मुख और सीने पर होता है। मस्तिष्क शक्तिशाली और स्वस्थ बनता है। कार्य करने की क्षमता का विकास होता है। मुख रक्ताभ होता है। जिससे सौन्दर्य की अभिवृद्धि होती है। अशुद्ध वायु के निष्कासन से फेफड़ों की शक्ति का विकास और रक्त शोधन होता है। सीने के विस्तार से शरीर की सुदृढ़ता में वृद्धि होती है। मोटापा कम होने से शरीर का समुचित विकास होने लगता है। पाचन-तंत्र पर विशेष प्रभाव पड़ने से भूख अच्छी लगने लगती है।
ग्रंथि तंत्र पर प्रभाव- सिंहासन से प्रभावित होने वाली ग्रंथियां हैंहाइपोथेलेमस, थेलेमस, थायराइड, पेराथाइराइड, थायमस आदि। इनके प्रभाव से चिन्तन का विकास होता है। निर्णय शक्ति बढ़ती है। आवाज मधुर होती है । भाषा स्पष्ट और घोष वाली बनती है। दब्बूपन दूर होता है। स्वतंत्र व्यक्तित्व निर्मित होने लगता है मूलबन्ध होने से अपान की विशुद्धि होने लगती है।
___ लाभ- सम्पूर्ण शरीर में सक्रियता का अनुभव होता है, प्राण-शक्ति बढ़ती है। स्वर-यंत्र सक्रिय बनने से उच्चारण की शुद्धि होती है। साधना के विकास में यह सहयोगी बनता है। मुख पर झुर्रियां नहीं पड़ती। मुहांसे दूर होते हैं। जठराग्नि प्रदीप्त होती है। 8. उष्ट्रासन
"उष्ट्र"--रेगिस्तान में वाहन के रूप में उपयोग लिए जाने वाला प्राणी है। आसन की आकृति उष्ट्र की तरह होती है। इसलिए इसे उष्ट्रासन की संज्ञा से अभिहित किया गया है। पश्चिमोत्तानासन आदि आसनों से रीढ़ का झुकाव आगे की ओर होता है किन्तु उष्ट्रासन से उसके विपरीत खिंचाव होने से मेरुदण्ड के आस-पास की मांसपेशियां स्वस्थ होने लगती हैं।
विधि-घुटनों को मोड़कर पंजों के बल बैठे। दोनों घुटने बराबर रहेंगे। धड़ को सीधा रखें। गर्दन, मेरुदण्ड, सीने को जितना पीछे ले जा सकें, ले जाएं। दोनों हाथों की हथेलियों को एड़ियों पर टिकाएं। सीने और पेट को जितना फैला सकें फैलाएं।
श्वास और समय- घुटनों पर हथेलियां टिकाते समय दीर्घ पूरक करें। और इस तरह दीर्घ रेचन करें। तीन मिनट तक दीर्घ पूरक और रेचन करते रहें।
श्वास पर प्रभाव- शरीर में मेरुदण्ड महत्वपूर्ण अंग है। उसमें लचीलापन आने से पूर्ण शरीर स्वस्थ और शक्तिशाली बनता है। शहरी चर्या
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