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________________ अहिंसा और अणुव्रतः सिद्धान्त और प्रयोग तत्त्वों को सन्तुलित किया जाता है। इसी तरह पैरों की अंगुलियों पर विशेष दबाव डालने से प्राण का प्रवाह होने लगता है। इससे घुटनों, कटि, कन्धों एवं गर्दन में प्राण-प्रवाह संतुलित होता है तथा इससे सम्बद्ध दोषों को दूर किये जाने में सहायता मिलती है। उनकी सक्रियता में वृद्धि होती है। साथ ही सीने एवं पेट के अवयव भी इससे शक्तिशाली बनते हैं। विधायक भावों की वृद्धि होती है, मन एकाग्र, सुदृढ़ एवं संकल्पवान बनता है। शरीर स्वस्थ एवं सुन्दर बनता है । लाभ : ग्रन्थितंत्र पर प्रभाव पैरों के पंजों में अवस्थित ग्रंथितंत्र के सूचक प्रभावित होने से उनसे सम्बद्ध ग्रन्थियां भी प्रभावित होती हैं। अन्य भाव 188 चित्त की स्थिरता, ज्ञान की निर्मलता तथा अपान वायु की शुद्धि होती है । पैर व स्नायुओं की दुर्बलता दूर होती है। कब्जी दूर होती है। भावना - -शुद्धि एवं पाचनतंत्र सक्रियता की उपलब्धि होती है। 7. सिंहासन आसन के प्रयोग से मुख की आकृति सिंह जैसी हो जाती है । इसलिए इसे सिंहासन कहा गया है। सिंह पशुओं में शक्तिशाली होता है। इसे जंगल का राजा भी कहते हैं । यह आसन कई दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है । 1 विधि - घुटनों को मोड़कर, पंजों के बल बैठिए । (जिस प्रकार वंदना के समय बैठते हैं।) हथेलियों को जमीन पर टिकाएं। हाथों की अंगुलियां घुटनों के भीतर रहेगी । श्वास का रेचन मुख से करें । जिह्वा को बाहर निकालकर मुख को पूरा खोलें। आंखें दोनों भृटकुटियों के मध्य (दर्शन केन्द्र) केन्द्रित करें। जितना अधिक रेचन हो सके, रेचन करें। जितने समय तक कुम्भक कर सकें, गले के स्नायुओं को जितना खिंचाव दे सकें, दें । मुख मंडल, सीना रक्ताभ हो जाएगा। पेट की मांसपेशियां सिकुड़ेंगी। 'मूलबन्ध' स्वत: लग जाएगा। जब श्वास ग्रहण करने की आवश्यकता अनुभव हो तब धीरे-धीरे श्वास को नासिक से ग्रहण करें । •. सिंहासन की यह मुद्रा पद्मासन करके भी की जाती है। पद्मासन लगाएं। हथेलियों को उसी प्रकार भूमि पर टिकाएं। शेष क्रियाएं पूर्ववत् करें। श्वास और समय- श्वास को मुख से पूरा रेचन करें। फिर कुम्भक कर मुद्रा बनाएं। पूरक करें। रेचन कर, कुम्भक करें। आधा से एक मिनट एक बार के प्रयोग में समय लगेगा। इस तरह तीन बार करें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003061
Book TitleAhimsa aur Anuvrat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni, Anand Prakash Tripathi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size12 MB
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