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कायोत्सर्ग प्रधान देश है। यहां गोपालन की प्राचीन परम्परा रही है। गाय का दोहन करते समय शरीर की जो मुद्रा बनती है उससे भूमि का अत्यल्प स्पर्श होता है। इस आसन में पंजों के बल ठहरने से पंजे का केवल अग्रभाग ही भूमि का स्पर्श करता है, इससे भूमि का गुरुत्वाकर्षण शरीर को कम से कम प्रभावित करता है। शरीर में पृथ्वी तत्त्व की प्रधानता रहती है। अतः पृथ्वी का प्रभाव इस पर सर्वाधिक पड़ता है। साधना-भाव में शरीर से मुक्ति, प्रधान लक्ष्य रहता है। अतः शरीर से मुक्त होने का अभ्यास करने के लिए पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण को दूर करना सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण बन जाता है। भगवान महावीर को भी कैवल्य की प्राप्ति गोदुहासन में हुई थी। सारतः ज्ञान के विकास और अप्रमत्त बने रहने के लिए यह आसन बहुत महत्त्वपूर्ण है। विधि
भूमि पर बिछे आसन पर दोनों पंजों के बल बैठें। इस स्थिति में घुटने भूमि की ओर झुके रहेंगे। गाय दुहते समय, दूध दुहने वाले बर्तनों को दोनों घुटनों के मध्य रखने के स्थिति के समान, दोनों घुटनों के मध्य आधे से एक फुट का फासला बनाएं। इसी तरह दुहते समय मुट्ठियों की आकृति को ध्यान में रखते हुए, दोनों हाथों की मुट्ठियां बांधकर घुटनों के ऊपर रखें । दोनों अंगूठे अंगुलियों के भीतर रहें। यह उस स्थिति के समान होगा जब गाय को दुहते समय गाय का स्तन अंगूठे के मध्य रहते हैं, जिसको दबाते रहने से दूध बाहर निकलता है। समय और श्वास-प्रश्वास
प्रतिदिन अभ्यास करते हुए आधे मिनट से पांच मिनट तक इसकी समयावधि बढ़ाई जा सकती है। आध्यात्मिक विकास एवं चैतन्य-जागरण की दृष्टि से आधा घण्टे से 3 घंटे तक भी अभ्यास किया जा सकता है। स्वास्थ्य पर प्रभाव
___ गोदुहासन की स्थिति में शरीर का पूरा वजन पंजों पर जाता है। उससे अंगूठों और अंगुलियों पर विशेष रूप से दबाव पड़ता है। शरीर में पैरों और हाथों की अंगुलियों की पौरे महत्त्वपूर्ण होती हैं। "एक्यूप्रेसर" चिकित्सा पद्धति भी इस तथ्यों को स्वीकार करती है। उसका मानना है कि इन पौरों को दबाने से शरीर में प्राण का प्रवाह सन्तुलित होता है। एक दृष्टि से इन्हें हमारे शरीर का इंडिकेटर (संकेतक) कहा जा सकता है। इनको दबाने से शरीर के किसी भी भाग में अवरुद्धप्राण सम्यक्तया पुनः प्रवाहित होने लगता है। योग के गन्तव्य से अंगूठे से कनिष्ठा (छोटी अंगुलि) तक के अंगुलियों के अग्र भागों में पांच तत्त्वों- अग्नि, वायु, आकाश, पृथ्वी और जल को अवस्थित माना गया है। अत: इन सभी को परस्पर मिलाकर इन
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