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________________ अहिंसा और अणुव्रतः सिद्धान्त और प्रयोग और शीघ्रता से कर्म निपटाने की प्रवृत्ति से मेरुदण्ड के मनके अपने स्थान से इधरउधर हो जाते हैं। आजकल स्तनीय डिस्क की यह पीड़ा प्रतिदिन बढ़ती जा रही है । उष्ट्रासन के अभ्यास से मांसपेशियां सुदृढ़ और सुगठित बनती हैं। मेरुदंड की स्वस्थता शरीर के विकास का आधार है। पृष्ठ की मांसपेशियों पर आए अवरोध निकलने लगता है। बड़ी और छोटी आंत सक्रिय होती हैं। मल का निष्कासन अच्छी तरह होने लगता है । पाचन क्रिया अच्छी होने लगती है। यदि किसी का नाभि केन्द्र (धरण) ऊपर-नीचे हुआ हो तो वह अपने स्थान पर लौट आता है। मधुमेह की बीमारी को ठीक करती है। गर्दन के दोषों के दूर होने से गर्दन का दर्द दूर होता है। आंखों की रोशनी ठीक होती है। शरीर की सुन्दरता में अभिवृद्धि होती है। कटि भाग पतला होता है। पेट और मोटापा कम होता है, जिससे शरीर में कान्ति और स्फूर्ति बढ़ती है। 190 ग्रंथितंत्र पर प्रभाव - गोनाड्स, एड्रिनल, थाइमस, थाइराइड ग्रंथियां इससे विशेष रूप से प्रभावित होती हैं। जिससे मूत्र और मल धारण की क्षमता बढ़ती है। प्रोस्टेट पीड़ा कम होती है। थायमस से भाव विशुद्धि का अवकाश उपलब्ध होता है । व्यक्ति में मैत्री और करुणा विकसित होती है। थायराइड ग्रन्थि स्त्रावों में संतुलन पैदा करने में उष्ट्रासन उपयोगी है। स्वास्थ्य केन्द्र, तैजस केन्द्र और विशुद्धि केन्द्र की सक्रियता से व्यक्तित्व के रूपान्तरण में सहयोग मिलता है। लाभ - पाचन-क्रिया में सक्रियता, अजीर्ण और अपानवायु की शुद्धि होती है । मल निष्कासन में सहयोगी और पीठ के दर्द में लाभदायक है । धरण (नाभि केन्द्र) ठीक होता है । मधुमेह के लिए उपयोगी है। पैर और हाथ के स्नायु शक्तिशाली होते हैं । पैर की अंगुलियों पर दवाब पड़ने से शरीर का प्राणतंत्र सक्रिय होता है। आंखों के दोष दूर होते हैं। लीवर यकृत स्वस्थ बनता है 9. चक्रासन यह आसन करते समय शरीर की स्थिति चक्र जैसी गोल हो जाती है । अतः इसे चक्रासन कहा गया है। चक्रासन से पूरे शरीर को मोड़कर हाथों और पैरों पर शरीर के वजन को तौलते हैं । सावधानी - इस आसन को करते समय अत्यन्त सावधानी की आवश्यकता रहती है। प्रारम्भ में किसी सहयोगी के सहयोग से शरीर को धीरेधीरे पीछे की ओर जाते हुए भूमि पर हथेलियों का स्पर्श करते हैं। पीछे जाते समय सहयोगी पीठ पर हाथ रखता हुआ पीछे भूमि की ओर जाने की सूचना देता रहता है जिससे चक्रासन करने में सहायता मिलती है। 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003061
Book TitleAhimsa aur Anuvrat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni, Anand Prakash Tripathi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size12 MB
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