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________________ कायोत्सर्ग 1 पैर की मांसपेशियां सुदृढ़ और लचीली बनती हैं। विपरीत दिशा में तान पड़ने से उनकी कार्यक्षमता बढ़ती है। पेट, सीना और गर्दन पर दोनों तरफ से खिंचाव पड़ता है जिससे पेट के विभिन्न अवयव- बड़ी आंत, छोटी आंत, यकृत, प्लीहा, आमाशय आदि स्वस्थ एवं सक्रिय होते हैं। इसी तरह फेफड़ों और गर्दन की मांसपेशियां शक्तिशाली बनती हैं। इस आसन से शरीर का ढांचा, मेरुदण्ड सुन्दर और लचीला बनता है। इससे नवीन स्फूर्ति और नव-जीवन का संचार होता है। जिस व्यक्ति को अपने अग्न्याशय (पेन्क्रियाज) को संतुलित बनाए रखना हो उनके लिए यह आसन बहुत उपयोगी है। इससे मधुमेह का निवारण होना माना जाता है। ग्रंथितंत्र पर प्रभाव अर्ध मत्स्येन्द्रासन से गोनाड्स, एड्रिनल, थाइमस, थाइराइड ग्रन्थियां विशेष रूप से प्रभावित होती हैं। पैर की एड़ी जिस रिक्त स्थान पर टिकती है वह वीर्य नाड़ी एवं मूत्र - प्रणाली को प्रभावित करती है परिणामतः ये स्वस्थ एवं सक्रिय बनती हैं। मूत्र - विकार नहीं होते । पेट और सीने के विशेष प्रकार से, परस्पर विपरीत दिशा में मुड़ने से एड्रिनल पर विशेष दबाव पड़ता है। जिससे एड्रीनल के स्राव संतुलित बनते हैं। थाइमस एवं थाइराइड ग्रन्थियां भी इस आसन से प्रभावित होती हैं। इससे मन एवं भावों की निर्मलता बढ़ती है। लाभ 183 इस आसन से सीना, पसलियां, गर्दन, नाभि, बाहें, पेडू आदि भागों की विशेष रूप से अन्तर मालिश होती है। इससे व्यक्ति स्वस्थ बनता है । अर्ध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003061
Book TitleAhimsa aur Anuvrat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni, Anand Prakash Tripathi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size12 MB
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