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अहिंसा और अणुव्रतः सिद्धान्त और प्रयोग
लाभ
उच्च रक्तचाप (H.B.P.) सामान्य बनता है। क्रोध उपशमन के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। मानसिक शान्ति के लिए उपयोगी है। 2. अर्द्ध मत्स्येन्द्रासन - इस आसन को करते समय शरीर की स्थिति मत्स्य जैसी बनती है। इसलिए इसे मत्स्येन्द्रासन कहा गया है। पश्चिमोत्तानासन, हलासन आदि में पृष्ठरज्जु आगे की ओर मुड़ती है। चक्रासन, धनुरासन में यह इसके विपरीत मुड़ता है। मत्स्येन्द्रासन से पृष्ठ-रज्जु को केवल घुमाव मिलता है। इससे पृष्ठ-रज्जु में लचीलापन बना रहता है। साथ ही पेट के विभिन्न अवयवों पर अलग प्रकार से दबाव पड़ता है। बड़ी आंत के ऊपर के हिस्से पर एक ओर से खिंचाव पड़ने से मल आगे की ओर सरक जाता है, जिससे कब्ज दूर होती है। विधि
आसन पर बैठकर दोनों पैरों को फैला दें। बाएं पैर को घटने से मोडकर एड़ी को गुदा के पास, रिक्त स्थान पर स्थापित करें। यहां एड़ी का स्पर्श बना रहे। दाहिने पैर को बाएं पैर के ऊपर से ले जाकर, बाएं पैर के मुड़े हुए घुटने के पास भूमि पर पंजे को स्थापित करें। अब सीधे बैठी हुई स्थिति में, दाहिने घुटने के ऊपर पैर को स्थापित कर हाथ से इस पंजे को पकड़ें। दूसरे हाथ को पीठ के पीछे से ले जाकर (हथेली का पृष्ठ भाग पीठ को छूता हुआ, हथेली सामने की ओर रखते हुए ) आगे की ओर अंगुलियों से नाभि का स्पर्श करें। कंधे और गर्दन को पृष्ठ रज्जु की ओर घुमाएं । दृष्टि कोहनी पर रहे। कुछ समय तक इस स्थिति में रुकें। इसके बाद दोनों पैरों को परस्पर बदलकर, दूसरी ओर से विपरीत क्रियाएं करते हुए यही प्रयोग करें। यह अर्ध मत्स्येन्द्रासन है। समय और श्वास-क्रम
सीधे बैठते समय श्वास लें। एड़ी, गुदा के पास स्थापित करते समय श्वास छोड़ें। हाथ घुटने के ऊपर रखते समय श्वास लें । गर्दन, कन्धा और हाथ नाभि के पास स्पर्श करते समय श्वास छोड़ें। समय 1 से 3 मिनट तक क्रमशः बढ़ाएं। आसन की स्थिति में श्वास-प्रश्वास सामान्य रहेगा। विशेष अभ्यास के लिए प्रति सप्ताह 1-1 मिनट बढ़ाकर 10 मिनट तक अभ्यास बढ़ाया जा सकता
स्वास्थ्य पर प्रभाव
अर्ध मत्स्येन्द्रासन स्वास्थ्य एवं साधना- दोनों दृष्टियों से उपयोगी है । इस आसन के प्रयोग से हाथ, पैर, पेट, सीना एवं गर्दन पर विशेष प्रभाव पड़ता है। हाथ
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