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अहिंसा और अणुव्रतः सिद्धान्त और प्रयोग
मत्स्येन्द्रासन बैठकर किये जाने वाले आसनों में महत्त्वपूर्ण है । ब्रह्मचर्य की साधना करने वालों के लिए यह आसन बहुत उपयोगी है।
3. बद्धपद्मासन
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पद्मासन की मुद्रा में बैठने के पश्चात् हाथों को पीठ के पीछे से लाकर बायें हाथ से बायें पैर के अंगूठे और दायें हाथ से दाहिने पैर के अंगूठे को पकड़ने से जो मुद्रा बनती है, उसे बद्ध पद्मासन कहा जाता है। इसमें पूरा शरीर दोनों हाथों से बंध जाता है। इसलिए इसे बद्ध पद्मासन कहा जाता है।
विधि : पद्मासन के पश्चात् दाहिने हाथ को
पीठ के पीछे से ले जाकर, बाय पार्श्व से निकालते हुए दाहिने पैर के अंगूठे को पकड़ें। इसी प्रकार बायें हाथ को पीठ के पीछे से ले जाकर, दाय पार्श्व से निकालते हुए बायें पैर के अंगूठे को पकड़ें। पूरक कर अन्तर कुम्भक करें । इस स्थिति में सीना फैल जाएगा। आराम से जितना रुक सकते हैं रुकें । रेचन करें। बाह्य कुम्भक कर जितना रुक सकते हैं, रुकें। दृष्टि नासाग्र पर रखें । दीर्घकालीन अभ्यास के समय श्वास-प्रश्वास गहरा रहेगा।
समय और श्वास-प्रश्वास
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बद्धपद्मासन में श्वास-प्रश्वास का क्रम इस प्रकार रखें- 5 सैकण्ड श्वास लेने में, 5 सैकण्ड श्वास भीतर रोकने में, 5 सैकण्ड श्वास छोड़ने में, सैकण्ड श्वास बाहर रोकने में इस क्रम से एक मिनट में इस आसन की 3 आवृत्तियां पूर्ण होती हैं। प्रतिदिन 3 मिनट तक आसनाभ्यास करें यानी कुल 9 आवृत्तियां 3 मिनट में होंगी। साधना की दृष्टि से दीर्घकालीन अभ्यास किया जा सकता है। अभ्यास की परिपक्वता के पश्चात् 15 मिनट से 30 मिनट तक का समय बढ़ाया जा सकता है ।
4. योग मुद्रा
मन, वचन और काया की एकरूपता होने से इसे योग मुद्रा कहा गया है। इस मुद्रा से मन जागरूक योगी की तरह बनता है अतः इसे योग मुद्रा कहा गया है। विधि - योग मुद्रा बद्धपद्मासन और पद्मासन दोनों स्थितियों में की जा सकती है। बद्ध पद्मासन की स्थिति में श्वास का रेचन करते हुए दाहिने घुटने पर नाक का स्पर्श करें। श्वास भरकर मेरुदण्ड को सीधा करें। पुनः श्वास का रेचन कर नाक को बायें घुटने पर लगायें। पूरक करते हुए अर्थात् श्वास भरते हुए
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