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कायोत्सर्ग
आसन का हमारी अन्तःस्रावी ग्रन्थियों ( एण्डोक्राइन ग्लैण्ड्स) पर भी प्रभाव पड़ता है, जो शरीर एवं भावनाओं का नियंत्रण करती हैं। इन ग्रंथियों से विशेष प्रकार के स्राव होते हैं, जिन्हें हार्मोन कहते हैं। इससे शरीर, मन एवं चैतन्य - केन्द्रों के विकास में सहयोग मिलता है । शरीर विज्ञान ने ग्रन्थियों के कार्य एवं प्रवृत्तियों पर सूक्ष्मता से अनुसंधान किया है। उससे ज्ञात हुआ है कि कौन-कौन-सी ग्रन्थियां किन-किन भावों का कार्य एवं नियंत्रण करती हैं । उनको नियंत्रित करने के लिए आसन, बन्ध आदि अन्य यौगिक प्रक्रियाओं का प्रयोग किया जाता है।
आसन का उद्देश्य
आसन से शरीर की सुघड़ता और सौंदर्य में अभिवृद्धि होती है। साथ ही मानसिक शांति और निश्चिन्त जीवन की उपलब्धि होती है। आसन करने का उद्देश्य है- शरीर के यंत्र को साधना के अनुरूप बनाना । शरीर का प्रत्येक अवयव सक्रिय एवं स्वस्थ बने, यह स्वास्थ्य और साधना दोनों दृष्टियों से अपेक्षित है। यह निर्विवाद है कि काया की क्षमता के अभाव में वाक् और मन शीघ्र उत्तेजित हो जाते हैं। वाक् और मन पर संयम से पूर्व काय-संयम आवश्यक है। उसके लिए आसन प्रक्रिया एक सम्यग्अनुष्ठान है। आचार्य कुन्दकुन्द ने तो स्पष्ट उद्घोषित किया है- “जिन-शासन को जानने के लिए आहार - विजय के साथ आसन - विजय को जानना आवश्यक है। "
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योगासन और व्यायाम में मौलिक अन्तर है । व्यायाम यानी एक्सर्साइज अथवा बॉडी-बिल्डिंग (Body-building) से शरीर की मांस-पेशियों एवं कुछ अवयव ही पुष्ट बनते हैं। उनकी पुष्टता एक बार मांसपेशियों के उभार के रूप में सामने आती है, पर अन्त में उनमें कड़ापन आने लगता है । उनको छोड़ देने से मांसपेशियां ढीली पड़ जाती हैं और वे असुन्दर दिखाई देने लगती हैं। दूसरे प्रकार के व्यायामकुश्ती, दौड़, बैठकें - एक बार तो शरीर की मांसपेशियां आदि को प्रभावित करते हैं, किन्तु स्थायित्व की दृष्टि से उनके भी अन्तिम परिणाम सुन्दर नहीं आते।
-सा
योगासन योगियों द्वारा खोजा गया अनूठा विज्ञान है। योगासन मात्र हाथपांवों को ऊंचा - नीचा करना ही नहीं है, उसके पीछे पूरा विज्ञान है। कौनआसन किस अवयव पर क्या प्रभाव डालता है, वह प्रभाव क्यों, किसलिए होता है, इन सबकी प्रायोगिक व्याख्याएं आज शोधकर्त्ताओं के पास उपलब्ध है। 3. आसन-प्राणायाम के आवश्यक विधि-निषेध
1. जिन व्यक्तियों के कान बहते हों, नेत्रताराएं कमजोर हों एवं हृदय दुर्बल हो, उन्हें शीर्षासन नहीं करना चाहिए ।
2. उदरीय अवयवों से पीड़ा एवं तिल्ली में अभिवृद्धि वाले व्यक्तियों को भुजंगासन, शलभासन, धनुरासन नहीं करने चाहिए ।
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