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अहिंसा और अणुव्रतः सिद्धान्त और प्रयोग कार्याधिक्य एवं व्यस्तता से मनुष्य अपने जीवन की उपयोगी एवं आवश्यक क्रियाओं का भी परित्याग कर देता है, जिससे न केवल वह स्वास्थ्य से हाथ धोता है, अपितु जीवन-विकास के मार्ग को अवरुद्ध कर देता है।
आसन से मानसिक प्रसन्नता के साथ-साथ शरीर के अवयवों पर सीधा असर होता है। संधि-स्थल, पक्वाशय, यकृत, फेंफड़े, हृदय, मस्तिष्क आदि सम्यक्तया अपना कार्य करने लगते हैं।
आसन से मांसपेशियां सुदृढ़ एवं सुडौल बनती है, जिससे पेट एवं कमर का मोटापा दूर होता है। चर्बी भी आसन से स्वयं कम होने लगती है। आसन करने से शरीर के सभी अंग एवं तंतु सक्रिय हो जाते हैं, जिससे रोग-प्रतिकार की क्षमता एवं स्वास्थ्य उपलब्ध होता है।
स्नायु-मंडल को शक्ति-संपन्न एवं सक्रिय करने के लिए आसन महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। स्नायुओं में क्रियावाहिनी और ज्ञानवाहिनी दोनों प्रकार की नाड़ियां होती हैं। आसन से उन पर विशेष प्रकार का दबाव पड़ता है। इससे वे पुष्ट एवं सक्रिय बनती हैं। उनकी सक्रियता एवं क्रियाशीलता शक्ति उत्पन्न करती है। स्नायु-मंडल मस्तक से लेकर पांव के अंगुष्ठ तक फैले हुए हैं। आसन से समस्त स्नायु प्रभावित होते हैं, अतः स्वास्थ्य-साधना की दृष्टि से आसन की उपयोगिता से इन्कार नहीं किया जा सकता।।
साधना की दृष्टि से जोड़ों में लचीलापन अत्यन्त अपेक्षित है। सुषुम्नाशीर्ष तथा सुषुम्ना के जोड़ों में लचीलापन होने से उनके अन्दर से प्रवाहित होने वाले शक्ति-स्रोतों को सक्रिय किया जा सकता है। स्वास्थ्य एवं साधना की दृष्टि से सुषुम्ना (स्पाइनल कोर्ड) का स्वस्थ होना अत्यन्त आवश्यक है। आसनों से सुषुम्ना पर सीधा असर होता है।
आसन की गतिविधि से पाचन-संस्थान सक्रिय बनता है। उसके रासायनिक द्रव्यों का समुचित स्राव होता है।
आसनों का सीधा असर रक्त-संचार पर भी होता है जिससे रक्त संचार सम्यक्तया होने लगता है। साथ ही प्रत्येक अंग का पोषण एवं अशुद्ध तत्त्व का परिहार होता है।
बौद्धिक विकास के साथ भौतिक वातावरण ने व्यक्ति को आज तनाव-पूर्ण स्थिति में पहुंचा दिया है। रक्तचाप एवं रक्तमंदता की बीमारी प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इस पर नियंत्रण के लिए योगासन अचूक साधन है। कायोत्सर्ग के रूप में खोजी गई विधि जहां व्यक्ति को तनाव-मुक्त करती है, वहां रक्तचाप पर भी नियंत्रण करती है।
आसनों में श्वास-प्रश्वास का भी विशेष प्रयोग किया जाता है जिससे फेफड़ों की क्रिया पूरी होती है। उसका परिणाम हृदय और रक्त-शोधन पर पड़ता है।
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