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अहिंसा और अणुव्रतः सिद्धान्त और प्रयोग 3. कोष्ठबद्धता (कब्ज) से पीड़ित व्यक्ति को योग-मुद्रा, पश्चिमोत्तानासन अधिक समय तक नहीं करना चाहिए।
4. हृदय-दौर्बल्य में साधारणतया उड्डियान और नोली-क्रिया नहीं करनी चाहिए। 5. फेफड़े के दौर्बल्य में उज्जाई प्राणायाम और कुम्भक न किया जाए।
6. जिन व्यक्तियों के उच्च रक्तचाप रहता हो उन्हें कठोर यौगिक अभ्यास नहीं करना चाहिए।
4. सावधानियां 1. यौगिक अभ्यास का प्रभाव क्लान्ति या स्फूर्तिनाश नहीं होना चाहिए। यौगिक अभ्यास के बाद पूर्ण उत्साह की अनुभूति होनी चाहिए।
2. पूरे अभ्यास क्रम को एक साथ निरन्तर करना आवश्यक नहीं है। बीच-बीच में आवश्यकतानुसार विश्राम किया जा सकता है।
3. अभ्यास-क्रम में लगाए गए बल से शरीर की किसी भी प्रणाली पर कोई तनाव न पड़े।
4. आसन सजग रहकर, आत्मविश्वास से संपादित करने से ध्येय की पूर्ति होती है।
5. यदि बीच में लम्बे समय तक अभ्यास रुकगया हो तो उसका पुनः अभ्यास करें। उसकी पूरी मात्रा तक पहले की अपेक्षा अल्प समय में ही पहुंचा जा सकता है।
6. अल्प मात्रा में ठोस खाद्य पदार्थ या पूर्ण मात्रा में पेय पदार्थ ग्रहण करने के उपरान्त लगभग डेढ़ घंटे तक योगाभ्यास नहीं करना चाहिए।
7. योगाभ्यास के बाद आधे घण्टे तक भोजन एवं दस मिनट तक नाश्ता न करें।
8. आसनों के अभ्यास को धीरे-धीरे बढ़ाएं। कम समय में अधिक आसन के बजाय आसनों के समय बढ़ाने की कोशिश करें।
9. आसन में सामान्यतः श्वास गहरा व दीर्घ लेना चाहिए। शरीर का झुकाव व मुड़ना हो उस समय रेचन करें, सीधा करते हुए पूरक करें।
10. आसनों के पश्चात् प्राणायाम का अभ्यास धीरे-धीरे बढ़ाएं।
11. आसन करते समय अपने चित्त को सजग रखकर उसमें ही अपने आपको लीन रखें। कम से कम मानस चक्षुओं से उस आसन का साकार रूप बना लें।
___5. आसन 1. शशांकासन
'शशक' शब्द का अर्थ है- खरगोश, जो कि एक अत्यन्त कोमल और शान्त स्वभाव वाला प्राणी है। यह आसन साधते समय शरीर की आकृति शशक यानी खरगोश जैसी बन जाती है अत: इसे शशांकासन कहा गया है। साथ ही
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