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अहिंसक समाज- संरचना
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(वृहत् व्यवसाय या वृहत् उद्योग) और महापरिग्रह (विपुलसंग्रह) व्यक्तिगत नहीं होंगे। उसका समाजीकरण दण्डशक्ति के आधार पर नहीं, किन्तु विसर्जन के आधार पर होगा। सुरक्षा की निर्भरता
क्या अहिंसक समाज रक्षा के लिए पुलिस और सेना पर निर्भर होगा या उसे उनकी अपेक्षा नहीं होगी ?
इस प्रश्न पर मानवीय प्रकृति तथा समग्र विश्व के संदर्भ में विचार किया जा सकता है।
देश की आन्तरिक सुरक्षा का दायित्व पुलिस पर और बाहरी आक्रमण की सुरक्षा का दायित्व सेना पर होता है। अहिंसक समाज की स्थापना होने पर आन्तरिक मामलों में सेना के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं होगी और पुलिस की आवश्यकता भी कम-से-कम होगी। अहिंसक समाज में अणुव्रत का वह व्रत अनिवार्यतः पालनीय होगा
"मैं किसी पर आक्रमण नहीं करूंगा और आक्रामक नीति का समर्थन भी नहीं करूंगा।"
अहिंसक समाज में सेना आक्रमणकारी नहीं होगी। उसका काम केवल अपनी सीमा की सुरक्षा करना ही होगा।
पुलिस और सेना से मुक्त समाज की कल्पना प्रिय बहुत है, पर व्यवहार की भूमिका में उसका अवतरण अल्पकाल और साधारण प्रयत्न-साध्य नहीं है। निष्कर्ष की भाषा में निकट भविष्य में उसकी संभावना नहीं है। मूल्यों का परिवर्तन
अहिंसक समाज की संरचना के सामने सबसे बड़ी समस्या है मूल्यों का परिवर्तन । श्रम, वस्तु और संग्रह के मूल्य बदले बिना अहिंसक समाज-रचना की संभावना नहीं की जा सकती।
अहिंसक समाज की स्थापना में सबसे बड़ी बाधा है स्वार्थ । वह वैयक्तिक बड़प्पन और सुखानुभूति की प्रेरणा है। उसे कैसे बदला जाये ? क्या जनसाधारण किसी सैद्धान्तिक प्रेरणा को सामाजिक स्तर पर स्वीकार करने को तैयार हो सकता है ? इसमें भी हित-साधना की भावना कुछ ही लोगों में जागृत होती है। अधिकांश लोग अपने हित-साधन की चेष्टा में ही लगे रहते हैं।
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