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________________ 172 . अहिंसा और अणुव्रतः सिद्धान्त और प्रयोग इस समस्या का आधारभूत आश्वासन यह है कि मानव-स्वभाव सतत गतिशील और विकासशील है। यदि समाज की धारा को एक ही धारा में प्रवाहित किया जाए तो स्वार्थ-संयम की बात उसके संस्कारों में रूढ़ हो सकती है। इस कार्य की निष्पत्ति में आध्यात्मिक वातावरण, आंशिक रूप में सामाजिक दबाव और सत्याग्रह अत्यन्त उपयोगी हो सकते हैं। स्वार्थशासित समाज में नैतिकता, श्रम और स्वावलम्बन का अवमूल्यन हो जाता है । करुणाशासित समाज में नैतिकता, श्रम और स्वावलंबन का मूल्य बढ़ जाता है। अभ्यास 1. अहिंसक समाज की संरचना में अणुव्रत की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए बतायें कि क्या व्रतों के आधार पर समाज-रचना संभव है। 2. नीति और अध्यात्म के भेद को स्पष्ट करते हुए अध्यात्म की मौलिकता को सिद्ध करें। 3. आर्थिक स्वस्थता के लिए अपरिग्रह की धारणा को स्पष्ट करते हुए विश्वशांति में उसकी उपयोगिता को रेखांकित करें। 4. राष्ट्रवाद और विश्वशान्ति को एक साथ कैसे स्थापित किया जा सकता है समझायें? ם ם ם Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003061
Book TitleAhimsa aur Anuvrat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni, Anand Prakash Tripathi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size12 MB
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