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________________ 170 अहिंसा और अणुव्रत: सिद्धान्त और प्रयोग का विस्तार, अर्थ का विकेन्द्रीकरण और हिंसा- ये सब साथ-साथ चलते हैं। व्यक्तिगत स्वामित्व की सीमा क्या होगी? अहिंसक समाज का सदस्य व्यक्तिगत धन कितना रखे, यह संख्या निर्धारित करना बड़ा जटिल है। इसका सरल सूत्र यह हो सकता हैजितनी आवश्यकता उतना संग्रह । एक मनुष्य श्रम कर धन का अर्जन करता है, वह बहुत बड़ा संग्रह नहीं कर पाता। किसी मनुष्य में व्यावसायिक बुद्धि प्रबल होती है। वह बुद्धि-बल के सहारे विपुल धन कमा लेता है। श्रमिक की आवश्यकता श्रम से नियमित होती है, अत: वह यथार्थ होती है । बौद्धिक की आवश्यकता भी बौद्धिक हो जाती है। उसकी कहीं कोई सीमा नहीं होती। फिर 'जितनी आवश्यकता उतना संग्रह' इसका क्या अर्थ होगा ? अहिंसक समाज का सदस्य श्रमिक या बौद्धिक होने से पहले संयमी होगा। अतः वह वास्तविक आवश्यकताओं का अंबार खड़ा नहीं करेगा। उसका संग्रह दो नियामक तत्त्वों से नियंत्रित होगा : 1. अर्जन के साधनों की शुद्धि। 2. विसर्जन। अहिंसक समाज में साधन-शुद्धि का साध्य से कम मूल्य नहीं होगा। अतः अहिंसक समाज का सदस्य अर्जन के साधनों की शुद्धि का पूर्ण विवेक रखेगा। वह व्यवहार में प्रमाणिक रहेगा (1) किसी वस्तु में मिलावट कर या नकली को असली बताकर नहीं बेचेगा। (2) तोल-माप में कमी-बेशी नहीं करेगा। (3) चोर-बाजारी नहीं करेगा। (4) राज्य-निषिद्ध वस्तु का व्यापार और आयात-निर्यात नहीं करेगा। (5) सौंपी या धरी (बन्धक) वस्तु के लिए इन्कार नहीं करेगा। अर्जन के साधनों की शुद्धि रखते हुए उसे जो अर्थ प्राप्त होगा, वह उसके लिए अग्राह्य नहीं होगा। अहिंसक समाज की आवश्यकता व्यक्तिगत संयम के द्वारा नियंत्रित होगी। अत: उसका सदस्य अतिरिक्त अर्थ का विसर्जन कर देगा। वह विसर्जित अर्थ सामाजिक कोष के रूप में संगहीत होगा। समाज-कल्याण के लिए उसका उपयोग होता रहेगा । भगवान महावीर ने अहिंसा व्रतों के दो सूत्रों का प्रतिपादन किया था - (1) अल्प-आरंभ, (2) अल्प-परिग्रह । वर्तमान की भाषा में अल्प-आरंभ लघु व्यवसाय या लघु उद्योग और अल्प-परिग्रह का अर्थ आवश्यकतापूरक व्यक्तिगत स्वामित्व हो सकता है। अहिंसक समाज में महाआरंभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003061
Book TitleAhimsa aur Anuvrat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni, Anand Prakash Tripathi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size12 MB
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