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________________ 169 अहिंसक समाज- संरचना उपशमन से होता है। इसकी ओर पर्याप्त ध्यान दिये बिना साम्यनिष्ठ शासनमुक्त समाज-रचना की आशा नहीं की जा सकती। महर्षि मार्क्स ने शासनमुक्त समाज की कल्पना की। उनके अनुसार साम्यवाद की चरम परिणति शासनमुक्त समाज है । हर साम्यवाद में वह हो नहीं सकी। साम्यवादी राष्ट्रों में शासन का नियन्त्रण अधिक कठोर हुआ है। मेरी समझ में इसका कारण है- मानसिक विकास की उपेक्षा । साम्यवादी राष्ट्रों ने समाज के भौतिक आधार में साम्य लाने का प्रयत्न किया, किन्तु उसके मानसिक विकास की ओर ध्यान नहीं दिया। फलस्वरूप उनकी जनता साम्यवादी हो गयी, किन्तु साम्यनिष्ठ नहीं हुई। जिसमें साम्य की निष्ठा नहीं होती, वह शासनमुक्त नहीं हो सकता। जिनका क्रोध उपशान्त नहीं है वे लोग झगड़ालू होने के कारण समाज को हीन मानकर वर्गभेद उत्पन्न कर देते हैं। मायावी मनुष्य दूसरों को ठगते रहते हैं। लोभी मनुष्य अपने हितों की पूर्ति के लिए दूसरे के हितों का विघटन कर डालते हैं। जिस समाज में उच्चता और हीनता, ठगाई और अपने स्वार्थों को प्राथमिकता देने की मनोवृत्ति होती है, वह शासनमुक्त कैसे हो सकता है ? यदि महर्षि मार्क्स भौतिक व्यवस्थाओं के समीकरण के साथ आन्तरिक परिवर्तन की आध्यात्मिक प्रक्रियाओं को जोड़ देते तो अवश्य ही साम्य का वाद साम्य की निष्ठा में बदलकर शासनमुक्त होने की ओर अग्रसर हो जाता। अहिंसक समाज में भौतिक व्यवस्थाओं के समीकरण के साथ आन्तरिक परिवर्तन की आध्यात्मिक प्रक्रिया समन्वित होगी, इसीलिए वह शासनमुक्ति की ओर सतत गतिशील होगा। व्यक्तिगत स्वामित्व ___ शासनमुक्त समाज की रचना में सबसे बड़ी बाधा है व्यक्ति की संग्रह-परायण मनोवृत्ति। हर आदमी अर्थ का संग्रह करता है और उस पर अपना स्वामित्व स्थापित करता है। क्या अहिंसक समाज में यह व्यक्तिगत स्वामित्व मान्य हो सकता है ? प्रवृत्ति का विकास प्रेरणा से होता है। अपने सुख और अपने स्वत्व की प्रेरणा बहुत प्रबल होती है । वैयक्तिकता को विलुप्त करने से विकास की प्रेरणा क्षीण हो जाती है और उसे अमर्यादित छूट देने से वह उच्छंखल हो जाती है। अतः अहिंसक समाज में व्यक्तिगत स्वामित्व एक सीमित अर्थ में ही मान्य हो सकता है। ___ अहिंसक समाज का दूसरा पहलू होगा अपरिग्रही समाज। अहिंसा और अपरिग्रह एक-दूसरे से विच्छिन्न होकर नहीं रह सकते। अहिंसक समाज का मुख्य सूत्र है- इच्छा-संयम, संग्रह-संयम और प्रवृत्ति का विकेन्द्रीकरण । इच्छा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003061
Book TitleAhimsa aur Anuvrat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni, Anand Prakash Tripathi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size12 MB
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