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अहिंसक समाज- संरचना
157 _जाति और संप्रदाय की रेखाएं भी मेरी दृष्टि में परिहार्य नहीं हैं। उनकी अपरिहार्यता को मान लेने पर भी उनमें संशोधन के अवकाश को मैं स्वीकार करता हूं। जन्मता जाति और आनुवंशिक संप्रदाय- ये दोनों हितकर सिद्ध नहीं हो रहे हैं। इस पक्ष में संशोधन आवश्यक है। और वह यह हो सकता है- जाति कर्मणा और संप्रदाय स्वीकृत होना चाहिए।
कर्मणा जाति की परम्परा प्रचलित होने पर जातीय घृणा की आधारशिला को खंडित हो जाना स्वाभाविक है। स्वीकृत संप्रदाय के गतिशील होने पर सांप्रदायिक कट्टरता के समाप्त होने की प्रबल संभावना है।
मेरे आवागमन के लिए एक ही दरवाजा खुला रहे और शेष सब बंद, उस स्थिति में खुले दरवाजे का अहं ओढ़ लेना मेरे लिये नैसर्गिक है।
हवा के लिए एक ही खिड़की खुली रहे और शेष सब बंद।
उस वातावरण में खुली खिड़की का अहं ओढ़ लेना मेरे लिए नैसर्गिक है। सभी दरवाजे मेरे लिए खुले हों तो मैं किसी भी दरवाजे से प्रवेश करने में स्वतंत्र होता हूं और एकपक्षीय अहं से बच जाता हूं। मेरा अहं उन सबके हिस्से में चला जाता है।
सभी खिड़कियां मेरे लिए खुली हों तो मैं जिस दिशा की हवा हो उस खिड़की का उपयोग कर सकता हूं और हवा की प्रतिबद्धता के संकट से बच सकता हूं।
___ क्या यह संभव है ? मैं पूछ सकता हूं, इसमें असंभव क्या है ? कर्मणा जाति अपेक्षाकृत अधिक शक्तिस्रोत बन सकती है। स्वीकृत संप्रदाय परम्परागत संप्रदाय की अपेक्षा अधिक गति दे सकता है।
हिन्दुस्तान अनेक जातियों और संप्रदायों का संगम है। एकता को हमेशा अनेकता की समस्या का सामना करना पड़ता है। राष्ट्र एक है, जातियां और संप्रदाय अनेक। अनेक में होने वाला टकराव एक के अस्तित्व को खतरे में डाल देता है।
हिन्दुस्तान के प्रबुद्ध वर्ग के लिए यह जरूरी हो गया है कि राष्ट्र की एकता को सुदृढ़ आधार देने के लिए वह कुछ प्राचीन मूल्यों के स्थान पर नये मूल्यों की स्थापना करे। कर्मणा जाति और स्वीकृत संप्रदाय- यह अवश्य ही नया मूल्य है। इसकी स्थापना से पुराना मूल्य विघटित होगा। मुझे लगता है, उसका विघटन अब असामायिक नहीं है। प्राचीन युग में जन्मना जाति का सिद्धांत बहुत लचीला था। उसके साथ कर्मणा जाति का व्यवहार भी चलता था। इन शताब्दियों में वह कठोर हो गया है। अब उसमें अधिक प्राणशक्ति नहीं है। स्वीकृत सम्प्रदाय की परम्परा आज भी कुछ अंशों में प्रचलित है। इसकी समस्या उन पर्यों में अधिक है, जहां जाति और संप्रदाय परस्पर घुले-मिले हैं। धर्म के आधार पर बनी हुई जातियों में धर्मनिरपेक्ष
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