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________________ 154 अहिंसा और अणुव्रतः सिद्धान्त और प्रयोग विस्तार में जाएं तो चोरी, श्ोषण आदि बुराइयां छूटे, यह अभिप्रेत है। संक्षेप में, हिंसा को उत्तेजना देने वाली प्रवृत्ति छूटे, फिर भला उसका कोई नाम हो या न हो। इस प्रकार अणुव्रत-आन्दोलन अहिंसा की पृष्ठभूमि पर पनपने वाला एक अनुष्ठान है। 7.2 . अहिंसा की सफलता लोग दण्ड-शक्ति से परिचित हैं, इसलिए उसमें विश्वास जमा हुआ है। अहिंसा में जो शक्ति है, वह हिंसा या दण्ड में नहीं है। पर दूसरों के नियंत्रण के लिए उसका कोई उपयोग नहीं है। दूसरों का नियंत्रण दण्ड-शक्ति ही कर सकती है। इसलिए लोग चाहते हैं, दण्ड की शक्ति चलती रहे। उसके बिना अराजकता की स्थिति हो जाएगी। अनेक राष्ट्रों में अन्याय, अत्याचार और उत्पीड़न के विरोध में हिंसक क्रांतियां हुईं। वे अपने लक्ष्य में सफल हुईं। विश्वास दृढ़ हो गया कि हिंसा सफल होती है। हिंसा की सफलता का मतलब है- भौतिक-लक्ष्य की पूर्ति। आज अहिंसा की सफलता का मानदण्ड भी वही है। आर्थिक कठिनाइयों को मिटा सके तो अहिंसा सफल हुई माना जाएगा और उन्हें न मिटा सकी तो विफल। सचमुच यह भूल हो रही है, अहिंसा को लक्ष्यहीन किया जा रहा है। अहिंसा का लक्ष्य जीवन-शोधन है। उसे अधिक प्रभावशाली किया जाए तो कठिनाइयों को पार करने का द्वार अपने आप खुलता है। अहिंसा का प्रयोग आर्थिक गुत्थी को सुलझाने के लिए किया जाए तो उससे परोक्षतः हिंसा को ही सहारा मिलता है। आर्थिक समस्या के सभाधान सूत्र 'सामाजिक साम्य' हो सकता है। अहिंसा का स्वरूप पवित्रता है, इसलिए वह व्यापक होने पर भी वैयक्तिक है। व्यवस्था का स्वरूप नियंत्रण है। उसमें स्थिति के समीकरण की क्षमता है। इसलिए व्यवस्था के परिणाम से अहिंसा को नहीं आंकना चाहिए। उसकी सफलता जीवन की पवित्रता में निहित है। स्वतन्त्रता की रक्षा अहिंसा से हो सकती है। हिंसा या दण्ड-शक्ति की माया जितनी बढ़ती है, उतनी ही परतन्त्रता बढ़ती है। मानवीय सफलता का सर्वाधिक उत्कर्ष स्वतन्त्रता है और वह अहिंसा के द्वारा ही लभ्य है। 73. अहिंसा और स्वतन्त्रता अहिंसा और हिंसा ये दो विरोधी प्रवाह हैं। इनकी धाराएं कभी मिलती नहीं। एक जीवन में दो धाराएं हो सकती हैं। एक वृत्ति में दोनों नहीं हो सकतीं। अहिंसा आत्मा की स्वाभाविकता और जीवन की उपयोगिता है। हिंसा जीवन की अनिवार्यता या अशक्यता और आत्म-शक्ति के अल्पविकास की दशा में पनपने वाली बुराई है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003061
Book TitleAhimsa aur Anuvrat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni, Anand Prakash Tripathi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size12 MB
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