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अणुव्रत आन्दोलन
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मूल्य है, जो एक राजा का था । मूल्य सत्ता को प्राप्त है, मनुष्य का स्वतंत्र मूल्य नहीं है। आज भी एक कर्मचारी को अधिकारी के सामने यह अनुभूति नहीं होती कि जैसा ही मनुष्य हूं। क्षमता और कार्य के भेद ने मनुष्यता को भी विभक्त कर रखा है । व्यवस्था के तारतम्य के नीचे जो मानवीय एकता की अनुभूति होनी चाहिए वह विकसित नहीं है । इसीलिए मानवता अखंड नहीं है । इस खंडित मानवता से ही अनेक विकृतियां और बुराइयां उत्पन्न हो रही हैं। हिंसा का दौर बढ़ रहा है।
आज का अहिंसक भी असहाय - सा दिखाई दे रहा है । वह जानेअनजाने हिंसा द्वारा प्रस्थापित मूल्यों को ही मान्यता दिये चला जा रहा है। उसका बाह्याचार पर इतना बल है कि वह अध्यात्म की गहराइयों में झांक ही नहीं पा रहा है। मानवीय क्षमता या एकता को देखने के लिए उसके नेत्र अभी खुले ही नहीं हैं ।
अहिंसक का क्षेत्र संन्यास ही नहीं है। उसकी साधना - भूमि है समूचा समाज | अहिंसक की पैनी दृष्टि बाहरी आवरणों को चीरकर गहराई में पैठ जाती है। वहां मनुष्य मनुष्य ही है, और कुछ नहीं है। सब बंधनों, व्यवस्थाओं, प्रवृत्तियों से परे, केवल मनुष्य और उसके ही जैसा मनुष्य ।
अभ्यास
1. अणुव्रत आंदोलन कब और क्यों चलाया गया तथा कैसे यह एक मानवता का आंदोलन है इसे विस्तार से स्पष्ट करें।
2. क्या अणुव्रत एक असाम्प्रदायिक आंदोलन है। यदि है तो उसमें आचार्य तुलसी की क्या भूमिका है ?
3. राष्ट्रनिर्माण के लिए अणुव्रत की उपयोगिता को विस्तार से स्पष्ट करें ।
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