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अणुव्रत आन्दोलन
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नैतिकता का विकास केवल आध्यात्मिकता के आधार पर हो। दूसरों के अहित की चेष्टा करने से भले फिर दूसरों का अहित न हों, स्वयं उसी का अहित होता है, इसलिए दूसरों के अहित की चेष्टा से बचा जाये- यह आध्यात्मिकता है। इसके आधार पर जो नैतिक विकास होता है, वह किसी के लिए भी खतरनाक नहीं होता । यह मानव की ही नहीं किन्तु प्राणीमात्र की एकता की दिशा है। यह विचार जितना दार्शनिक है, उतना ही वैज्ञानिक है। इसकी प्रक्रिया निश्चित है। इतिहास साक्षी है कि जाति, भाषा, प्रांत और राष्ट्र को मनुष्य ने ही जन्म दिया और आगे जाकर उसकी कृतियां ही उसके लिए अभिशाप बनीं- संघर्ष और संहार का कारण बनीं। राष्ट्र और क्या है ? व्यक्ति के स्वार्थों का विस्तार-क्षेत्र है। परिवार में स्वार्थों का विस्तार होने लगा और वह होते-होते राष्ट्र तक होता चला गया। यह स्वार्थ या भोग के विस्तार की दिशा है। इस दिशा में अन्तर्राष्ट्रीयता की भावना भी विशेष मूल्यवान नहीं है। आध्यात्मिकता इसकी विपरीत दिशा है। उसका स्वरूप है- स्वार्थ-त्याग या भोग-त्याग। अपने हित के लिए, अपनी शान्ति के लिए स्वार्थ और भोग का संयम कीजिये। नैतिकता का विकास अपने आप होगा।
"सुधरे व्यक्ति, समाज व्यक्ति से उसका असर राष्ट्र पर हो। जाग उठे जन-जन का मानस, ऐसी जागृति घर-घर हो॥"
6.6 अध्यात्म और नैतिकता समाज और राज्य की परिचालिका नीति बाहरी प्रकाश है। वह देश, काल और स्थिति की उपज होती है। उसके अनुसार कोई भी कार्य बुरा या भला ही नहीं होता, किन्तु बुरा या भला भी होता है। अध्यात्म-दृष्टि या चरित्र-निर्मायिका दृष्टि अन्तर् का आलोक है । वह शाश्वत सत्य है, उसकी सीमा में देश-काल की अस्थिरता नहीं होती। नीति का आधार सद्-व्यवहार और समाज की भलाई है। अध्यात्म का आधार अन्तर्-शोधन और आत्मा की भलाई है। अध्यात्म जड़ है, नीति उसकी शाखा । जड़ के बिना शाखा का स्थायित्व नहीं होता, अध्यात्महीन नीति थोड़े में लड़खड़ा जाती है। इसलिए उसे अध्यात्म का अवलम्ब लेना ही चाहिए। इसमें एक दार्शनिक कठिनाई भी है। नीति का विचार सर्वसाधारण है, वैसे अध्यात्म का विचार सर्वसम्मत नहीं है। आत्मा, अमरत्व, पुनर्जन्म, अपने किये कर्मों का अवश्य भोग, परमात्म पद- ये अध्यात्मवाद की पूर्व मान्यताएं हैं। अनात्मवादी को ये स्वीकार नहीं होती, इसलिए दोनों के चरित्र का मापदण्ड अन्त तक एक नहीं होता। नीति सामाजिक जीवन की उपयोगिता है, इस दृष्टि से वह आत्मवादी को भी मान्य होती है, पर अध्यात्मवाद नीतिवादी को मान्य नहीं होता. अतएव समाज की भूमिका से परे विकास पाने वाले चरित्र का मूल्य आंकने की दृष्टि उसमें नहीं होती। अणुव्रत इस समस्या का समाधान है। उसका विचार न
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