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________________ मणुव्रत आन्दोलन आचार्य तुलसी ने व्रतों का नये रूप में वर्गीकरण किया । वर्तमान की अपेक्षाओं को ध्यान में रखकर उन्हें आन्दोलन का रूप दिया । उन नये वर्गीकरण और आंदोलन के प्रवर्तक आचार्य तुलसी हैं। एक बार एक भाई ने पूछा - "क्या अणुव्रत का आरंभ आचार्य तुलसी ने किया है ?" मैंने कहा- "नहीं।" वही बोला- "तो फिर प्रवर्तक कैसे ?" मैंने कहा- "हम आचार्यश्री को अणुव्रत का नहीं किन्तु अणुव्रत आंदोलन का प्रवर्तक मानते हैं।" दूसरी बात - प्रवर्तक का अर्थ केवल प्रारम्भकर्ता ही नहीं, संचालक भी है । संचालन का दायित्व अभी आचार्यश्री के हाथों में है। इसलिए भी यह उपयुक्त है । उनको इस अर्थ में सन्देह हुआ । नालन्दा विशाल शब्द - सागर देखा । 'उसमें प्रवर्तक का अर्थ संचालक मिला और प्रश्नकर्त्ता को समाधान भी मिल गया। 6.3 अणुव्रती की पात्रता 133 इस विश्व में अनेक राष्ट्र, अनेक जातियां, अनेक वर्ग, अनेक सम्प्रदाय और अनेक विचार वाले लोग हैं। भौगोलिक सीमा और विचारों के भेद ने लोगों को अनेक रूपों में बांट रखा है। वास्तव में ये सारे भेद कृत्रिम हैं। बाहरी सीमाएं मनुष्य मनुष्य में भेद नहीं डाल सकतीं। इसलिए अणुव्रती बनने में जात-पांत आदि के भेद बाधक नहीं बनते । अणुव्रत विधान के अनुसार जीवन-शुद्धि में विश्वास रखने वाला हर व्यक्ति अणुव्रती हो सकता है। अणुव्रत का मूल आधार है- मानवीय एकता और सह-अस्तित्व । जिस व्यक्ति का मानवीय एकता में विश्वास नहीं है, जिस व्यक्ति का सह-अस्तित्व में विश्वास नहीं है, जिस व्यक्ति का मानवीय समानता में विश्वास नहीं है, वह अणुव्रती नहीं हो सकता । 1 आत्मा, परमात्मा, पुनर्जन्म और धर्म को नहीं मानने वाला भी अणुव्रती हो सकता है ? मानवीय एकता, समानता और सह-अस्तित्व में जिसकी आस्था है वह अणुव्रती हो सकता है, फिर वह चाहे शाब्दिक रूप में आत्मा-परमात्मा को माने या न माने, धर्म को माने या न माने, उपासना करे या न करे। ये उसकी व्यक्तिगत आस्था के प्रश्न हैं । अणुव्रत मानवीय आचार-संहिता है । जो मनुष्य है, वह मनुष्य होने तथा मानवता के प्रति आस्थावान् होने के नाते अणुव्रती होने का अधिकार प्राप्त कर सकता है। व्यक्ति-निर्माण की दिशा अणुव्रत - आंदोलन व्यक्ति निर्माण की दिशा है। सत्ता से सामूहिक ढांचा बदल जाता है। व्रतों से वैसा नहीं हो पाता। सत्ता बाहरी रूप बदलती है, वह अन्तर् को नहीं छूती । व्रत अन्तर् को छूते हैं । अन्तर् का परिवर्तन आन्तरिक योग्यता पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003061
Book TitleAhimsa aur Anuvrat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni, Anand Prakash Tripathi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size12 MB
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