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अहिंसा और अणुव्रतः सिद्धान्त और प्रयोग चालू क्रम बदलना पड़ता है। ऐसा किये बिना वह व्रत और विलास दोनों साथ ही न्याय नहीं कर सकता।न वह सफल व्रती ही बन सकता है और न सफल विलासी ही रह सकता है। इस पर से अणुव्रती के लिए जीवन-व्यवस्था के परिवर्तन की बात आती है। शोषणहीन समाज-व्यवस्था में उसे कोई कठिनाई नहीं, किन्तु समाज-व्यवस्था वैसी न बनने पर भी कम-से-कम उसे तो अपना जीवन-क्रम बदलना ही होगा। धन के द्वारा बड़ा बनने की भावना, दूसरों से अधिक सुविधा पाने की भावना, दूसरों के श्रम द्वारा अनुचित लाभ कमाने की भावना, शोषण और अवैध तरीकों द्वारा धनार्जन की भावना छोड़ देना उसका सहज धर्म हो जाता है। अणुव्रत विचार का लक्ष्य है-व्यक्ति-व्यक्ति में सहज धर्म का विवेक जगाना, प्रत्येक व्यक्ति अपनी आन्तरिक प्रेरणा द्वारा बुराइयों से बचे, बचने का उपाय करे, व्रती बने, वैसी भावना पैदा करना।
6.2 अणुव्रत-आन्दोलन के प्रवर्तक आन्दोलन के प्रवर्तक आचार्य श्री तुलसी जैन-परम्परा के कुशल नेता थे। गौर वर्ण, मंझला कद, सहज आकर्षण, प्रसन्न मुद्रा, चमकती आंखें और विशाल ललाट यह उनका बहिर्दर्शन है। चरित्र-विकास के उन्नयन की महान् आकांक्षा, अनाग्रह और समन्वय दृष्टि का व्यवहार में उपयोग भौतिक शक्तियों के विकास पर आध्यात्मिकता के अंकुश की सुदृढ़ आस्था, यह है उनका आन्तरिक व्यक्तित्व।
धन से धर्म नहीं होता, हृदय-परिवर्तन के बिना अहिंसा नहीं हो सकती, बल-प्रयोग हिंसा है, पारस्परिक सहयोग सामाजिक तत्त्व है, असंयमी दान का अधिकारी नहीं है आदि-आदि तेरापंथ की जीवनस्पर्शी मान्यताओं के वाहक होने के कारण वे क्रांति के सूत्रधार हैं। उनके विशाल व्यक्तित्व और कुशल वक्तव्य ने अपार दिलों को छुआ है। वे आध्यात्मिक दृष्टि से भारत और अभारत को भिन्न नहीं मानते। वे समूचे विश्व को आध्यात्मिकता से अनुप्राणित और नैतिकता में प्रतिष्ठित देखना चाहते हैं।
__ मित्तलजी ने लिखा था- "अणुव्रत-चर्या की ओर प्रथम व्यवस्थित इंगित महर्षि महावीर ने किया है- ऐसी मेरी जानकारी है। अतः इस विचार के प्रवर्तक महर्षि महावीर माने जाने चाहिए, आचार्य तुलसी नहीं । मेरा दावा है कि स्वयं आचार्य तुलसी जैसा महर्षि महावीर का नम्र अनुयायी यह मंजूर नहीं कर सकता कि वह अणुव्रत-चर्या का प्रवर्तक या कल्पनाकार है। यदि आप मेरे दावे को कसना चाहें तो उसे आचार्य तुलसी के सामने पेश कीजिये और उनकी प्रतिक्रिया मुझे बताइये।"
अणुव्रत-चर्या के प्रवर्तक भगवान् महावीर हैं- यह सच है। पर अणुव्रतआन्दोलन के प्रवर्तक आचार्य तुलसी हैं- यह भी उतना ही सच है । भगवान् ने अपने आप समय में अणुव्रतों के नियमों की रचना की। गृहस्थ-जीवन में उनका प्रवेश कराया। उस बात को आज ढाई हजार वर्ष हो गये। युग बदल गया। बुराइयों के रूप भी बदल गये। व्रत ग्रहण करने की परम्परा शिथिल हो गई।
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