________________
6. अणुव्रत आंदोलन
6.1 अणुव्रत का आंदोलन क्यों ? प्रश्न : अणुव्रत-अनुशीलन कोई आन्दोलन नहीं है, उसमें स्थिति की गति और गति की स्थिति है, दोलन नहीं है। कुछ है तो आरोहण है, अतः आपने अपनी योजना का जो नाम दिया है, वह गलत दिखता है ?
प्रश्न स्वाभाविक है। अणुव्रती के लिए अणुव्रत अनुशीलन की वस्तु है, दोलन की नहीं। किन्तु अणुव्रत-अनुशीलन के प्रति मानव समाज में प्रेरणा जागृत हो, इसलिए आंदोलन आवश्यक है। इसकी भावना हमें इन शब्दों में ग्राह्य है कि अणुव्रतों की व्यापकता के लिए आंदोलन है। इसी भावना का संक्षेप अणुव्रत-आंदोलन है। तात्पर्य की भाषा यही है लोगों को व्रत-ग्रहण की प्रेरणा मिले, व्रतों के प्रति आकर्षण बढ़े, लोग व्रती बनें। - प्रश्न : क्या अणुव्रत-आन्दोलन का कोई निर्धारित लक्ष्य है ?
जीवन के मूल्यांकन का दृष्टिकोण और उसकी उच्चता का मापदण्ड बदले-इस उद्देश्य से अणुव्रत-आंदोलन चला और वह लक्ष्य की ओर सहज गति से बढ़ रहा है। चरित्र का न्यूनतम विकास सबमें हो, हृदय की श्रद्धा से हो–यह 'अणुव्रत' का साध्य है। आन्दोलन के प्रवर्तक की यह मान्यता है कि चारित्रिक उच्चता के बिना मानव समाज की सभ्यता और संस्कृति उच्च नहीं बन सकती।
___ वैयक्तिक जीवन को पवित्र बनाए रखने की भावना के बिना चरित्रविकास नहीं हो सकता।
वैयक्तिक चरित्र की उच्चताविहीन सामुदायिकता जो बढ़ रही है, वह गंभीरतम खतरा है।
संयमहीन राष्ट्रीयता की भावना भी खतरा है।
रंग-भेद और जाति-भेद के आधार पर जो उच्चता और नीचता की परिकल्पना है, वह भी खतरा है।
___ अधिकार-विस्तार की भावना त्यागे बिना निःशस्त्रीकरण की चर्चाएं चल रही हैं, वह भी खतरा है।
विश्व में जब कभी खतरे की घंटी बजती है, वह खतरा नहीं है। वह वास्तविक खतरे का ही परिणाम है। खतरा स्वयं छिपा रहता है। मनुष्य परिणाम से चौंकते हैं उसके कारण से नहीं।
मानवीय, जातीय, राष्ट्रीय या अन्तर्राष्ट्रीय पतन के दो कारण हैं : (1) भोग-विलास का अतिरेक।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org