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अणुव्रत का स्वरूप
जाता है। इसका बहुत बड़ा महत्त्व अन्तर्राष्ट्रीय है । जिस पंचशील ने अनेक राष्ट्रों को मैत्री के रूप में बांधा है, उसमें एक शील है- आक्रमण न करना । यह अणुव्रत -भावना की बहुत बड़ी विजय है । साम्राज्यवादी मनोवृत्ति का मूल हिंसा है, तभी राजनीति के क्षेत्रों में अनाक्रमण की संधि का स्वर विवशता के बिना ही बलवान बनता जा रहा है। लोभ और विद्वेषवश वैयक्तिक या जातीय आक्रमण न हो, वैसा विवेक - जागरण भी अणुव्रत आंदोलन का प्रमुख ध्येय है। I
अनाक्रमण की वृत्ति का लाभ है - शान्ति, जातीय शान्ति, राष्ट्रीय शान्ति, विश्व शान्ति। अनाक्रमण मैत्री की पहली मंजिल है । आक्रमण की वृत्ति क्रूरता से बनती है । वह अंकुरित न हो, इसके लिए छोटी-छोटी बातों पर भी ध्यान देना आवश्यक है । (1) कठोर बन्धन से बांधना, (2) अंग-विच्छेद करना, (3) गरम शलाका से दागना, (4) निर्दयतापूर्वक पीटना, (5) पशुओं को आपस में लड़ाना, (6) त्रिशूल आदि के दाग लगाना, (7) बलात् दूसरों को अपने अधीन बनाना व अधीन किए रखना, ये छोटी किंतु क्रूरता की वृत्ति को पोषण करने वाली प्रवृत्तियां हैं। अनाक्रमण की भावना को प्रबल बनाने के लिए इनका निवारण भी अपेक्षित है।
शस्त्रास्त्र और गोला-बारूद के उद्योग-धन्धों का नियंत्रण भी अनाक्रमण की भावना को विकसित करने के लिए आवश्यक है । आक्रमण की भावना के रहते हुए निःशस्त्रीकरण की बात नहीं फलती, वैसे ही अस्त्र-शस्त्रों के बढ़ते हुए उत्पादन के साथ अनाक्रमण की संगति नहीं होती । शस्त्रास्त्रों का निर्माण करने वाले व्यापारी आक्रमण की वृत्ति को उभारने में ही अपना लाभ देखते हैं । आक्रमण की जड़ हिलाने के लिए पारिपारिवक पोषण तत्त्वों को उखाड़ फेंकना होगा ।
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जिस राष्ट्र की व्यापारिक साख नहीं होती उसका व्यापार भी अन्तर्राष्ट्रीय नहीं बनता । नैतिकता की कमी प्रतिष्ठा में भी कमी लाती है। आध्यात्मिक हानि के साथ-साथ व्यावहारिक हानि भी होती है। व्यापारिक अप्रामाणिकता छोड़ने का परिणाम केवल निर्यात वृद्धि ही नहीं होता उससे राष्ट्र के सांस्कृतिक विकास का अनुमापन भी किया जाता है । व्यापार में क्रूर व्यवहार - ( 1 ) माल पाकर नहीं मिला या कम मिला, (2) अच्छा माल पाकर बुरा मिला, (3) मूल्य पाकर नहीं मिला या कम मिला, (4) सौदा करके नहीं किया - करने से - ऊपर बताये हुए कार्य करने से प्रतिष्ठा टूटती है, नैतिक पतन होता है, इसलिए ऐसे कार्य जो व्रत भाषा में नहीं आये हैं किन्तु ये उनकी भावना से परे नहीं हैं
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जिस समाज में (1) स्त्रियों का व्यापार, (2) वेश्या - वृत्ति से आजीविका, (3) लाइसेंस, नौकरी, ठेका आदि प्राप्त करने के लिए घृणित तरीकों का प्रयोग,
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