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________________ अहिंसा और अणुव्रतः सिद्धान्त और प्रयोग अपने विरोधी व्यक्ति के विचारों को कुचलने की चेष्टा करना अणुव्रत की भावना के अनुसार विहित नहीं है, अतः व्रतों की भाषा में ऐसा न होने पर भी अहिंसा का व्रत लेने वाला और मानवीय स्वतंत्रता में विश्वास करने वाला अणुव्रती यह काम कैसे कर सकता है ? विरोधी व्यक्ति या विरोधी विचारों को कुचलने की बात हिंसा के जगत् में मान्य हो सकती है और घट भी सकती है, किन्तु अहिंसा के क्षेत्र में यह सर्वथा अस्वाभविक है । 110 प्रश्न- क्या राजनीति के क्षेत्र में विरोधी विचारों को सहने की स्थिति बन सकती है ? उत्तर- अहिंसा में विश्वास रखने वाले राजनैतिक व्यक्ति के लिए सहिष्णु होना बहुत जरूरी है । सहिष्णुता के अभाव में उनका विश्वास फलित नहीं हो सकता। अभी हाल ही की घटना है। एक राजनैतिक व्यक्ति ने वैचारिक स्वतन्त्रता का आदर करते हुए विरोधी विचारों के साथ सामंजस्य स्थापित करने के लिए हाथ बढ़ाया । इस काम के लिए अपनी ओर से पहल करके उसने विनम्रता का परिचय दिया। इसके बारे में पूछा गया कि एक राजनैतिक व्यक्ति ऐसा कर सकता है क्या ? उसने इस प्रश्न का एकटूक उत्तर देते हुए कहा- एक राजनैतिक व्यक्ति ऐसा नहीं कर सकता। पर क्या एक धर्माचार्य का शिष्य ऐसा कर सकता है। यदि नहीं तो फिर वह सही अर्थ में शिष्य, अहिंसक या धार्मिक कैसे हो सकता है ? 1 थोड़ी-सी गहराई में जाने का प्रयास हो तो व्यवहार में परिलक्षित होने वाले विरोध का विलय हो सकता है। विरोध का विलय न हो तो भी वैचारिक विरोध से कोई खतरा नहीं होता। खतरा तब होता है जब विरोधी स्थिति के अस्तित्व को समाप्त करने का भाव पैदा हो जाता है। अणुव्रत के निर्देशक तत्त्व समन्वय का संकेत देते हैं, अतः वहां विरोधी विचारों को कुचलने का प्रश्न ही नहीं उठ सकता । व्रत और अप्रमाद के संस्कार प्रश्न- अणुव्रत का पहला नियम है- मैं चलने-फिरने वाले निरपराध प्राणी का संकल्पपूर्वक वध नहीं करूंगा । यह व्रत अहिंसा के परिपूर्ण विकास की प्रेरणा है अथवा उसकी खण्डशः साधना का प्रतीक है ? उत्तर- अहिंसा या मैत्री एक अखण्ड तत्त्व है । इसे खण्डश: विभाजित कैसे किया जा सकता है ? अमुक व्यक्ति के प्रति हिंसा और अमुक के प्रति अहिंसा- ये दोनों स्थितियां साथ-साथ चलें, यह बहुत आश्चर्य की बात है। जिस व्यक्ति में अहिंसा की समग्रता है, जिसके अन्तःकरण में अहिंसा का अजस्र प्रवाह है, उसके लिए कोई भी प्राणी हिंस्य नहीं होता । अहिंसा की इस अखण्डता का सम्बन्ध व्यक्ति की आन्तरिक वृत्तियों के साथ है। किन्तु जहां शरीर धारण की Jain Education International For Private & Personal Use Only -- www.jainelibrary.org
SR No.003061
Book TitleAhimsa aur Anuvrat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni, Anand Prakash Tripathi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size12 MB
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