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________________ अणुव्रत का स्वरूप कर सकता। वर्तमान में सबसे बड़ी कठिनाई यह है कि आज का धार्मिक अकरुण है । उसके हृदय में अहिंसा और मैत्री का स्रोत प्रवाहित नहीं है । इस स्त्रोत के बिना व्रत- स्वीकार मात्र भाषाग्राही रह जाता है, भावना कहीं पीछे छूट जाती है। एक बार सर एंड्रूज ने महात्मा गांधी के सामने एक प्रश्न उपस्थित करते हुए कहा, हिन्दुस्तान की सबसे बड़ी समस्या क्या है ? आप यहां किस समस्या से चिन्तित हैं और किस बात से प्रसन्न हैं ? गांधीजी ने उत्तर दिया, मैं इस बात से बहुत चिन्तित हूं कि हिन्दुस्तान की नयी पीढ़ी से करुणा समाप्त हो रही है। करुणा समाप्त होने का अर्थ है कि हिन्दुस्तान की नैतिकता समाप्त हो रही है । इस चिन्ता के साथ मुझे प्रसन्नता भी है कि हिन्दुस्तान की मिट्टी में एक अनुपम विशेषता है जो करुणा के स्रोत को सूखने नहीं देती है। एक बार ऐसा प्रतीत होता है कि करुणा स्रोत सूख रहा है, किन्तु वह शीघ्र ही प्रवाहित होती हुई दृष्टिगत हो जाती है। 109 उत्तर प्रश्न- अणुव्रती बनने वाले अणुव्रत के मूलव्रतों को आधार मानकर चलते हैं अथवा अणुव्रत के निर्देशक तत्त्वों के माध्यम से नयी दिशाएं भी खोलते हैं ? अणुव्रती ग्यारह व्रतों का संकल्प करता है। संकल्प की भाषा संक्षिप्त है किन्तु व्रतों की भावना निर्देशक तत्त्वों में है। व्रत ग्रहण की मन:स्थिति भावना - प्रधान होनी चाहिए | व्रतों की भावना को हृदयंगम किए बिना केवल भाषा के आधार पर चलने वाला व्यक्ति अणुव्रत के साथ न्याय नहीं कर सकता । देश, काल और परिस्थिति के अनुसार व्रतों की भाषा में परिवर्तन हो सकता है। नैतिकतामूलक हर तथ्य भाषा में बंध भी नहीं सकता। इसलिए करणीय और अकरणीय को निर्देशक तत्त्वों के आधार पर ही लिया जा सकता है । कर्तव्य - अकर्तव्य के निर्णय के सैकड़ों प्रकार बन सकते हैं, और व्रत की भाषा से बचकर गलत काम भी किया जा सकता है, क्योंकि भाषा की अपनी सीमाएं हैं, वह भावना की असीमता का स्पर्श नहीं कर पाती । अणुव्रत की आचार-संहिता में 'शोषण नहीं करूंगा' यह शब्दावलि नहीं है, किन्तु शोषण करने वाला व्यक्ति अणुव्रत की भावना का आदर नहीं करता। अणुव्रत की भावना की गहराई तक पहुंचने वाला व्यक्ति किसी भी स्थिति में शोषण नहीं कर सकता और न उसे वैध मान सकता है। जिन व्रतों में संकल्पपूर्वक किसी छोटे प्राणी का वध करना भी वर्जित है, वहां मनुष्य के श्रम का शोषण करना वर्जित कैसे नहीं होगा ? भाषा का प्रमाण न मिलने पर भी भावना के धरातल पर यह स्वतः प्राप्त है कि मनुष्य किसी का शोषण न करे । 'पशु पर अति भार लादना' व्रत की भाषा में प्रत्यक्ष निषिद्ध नहीं है । किन्तु निर्दय व्यवहार न करने की भावना का आदर देने वाला व्यक्ति अतिभार लादने का अमानवीय कार्य कैसे कर सकेगा ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003061
Book TitleAhimsa aur Anuvrat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni, Anand Prakash Tripathi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size12 MB
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