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अहिंसा और अणुव्रतः सिद्धान्त और प्रयोग 5.2 व्रतों की भाषा और भावना प्रश्न- अणुव्रत के व्रत ग्यारह हैं और नैतिकता का क्षेत्र व्यापक है। क्या ग्यारह व्रतों में मनुष्य की समग्र नैतिकता समाविष्ट हो सकती है ?
उत्तर- कोई भी व्यक्ति जो एक निश्चित लक्ष्य तक पहुंचना चाहता है, सबसे पहले दिशा का निर्धारण करता है। गंतव्य की दिशा सही होने पर ही लक्ष्य प्राप्त हो सकता है। यह तथ्य यथार्थ है कि नैतिकता की दिशाएं बहुत व्यापक हैं
और व्रतों की संख्या बहुत सीमित है। इससे व्रती व्यक्तियों की नैतिकता एक सीमित परिधि में बंधी हुई-सी प्रतीत होती है। किन्तु व्रतों की भावना में नैतिकता के जो संकेत हैं, वे स्वयं प्रकाश-स्तंभ बने हुए हैं। भावना के आलोक में नैतिकता की दूसरी सारी दिशाएं सहज रूप में स्पष्ट हो जाती हैं।
नैतिकता की कुछ दिशाओं का प्रतिनिधित्व व्रतों की भावना में अंतनिर्हित है। भावना को सूक्ष्मता से समझने का प्रयास किया जाए तो ये दिशाएं स्वयं खुल जाती हैं। कुछ दिशाएं ये हैं
1. करुणा 2. समानता 3. मानवीय एकता 4. प्रामाणिकता 5. यथार्थ चिन्तन 6. कथनी और करनी में सामंजस्य 7. भोग-संयम 8. ममत्व-मुक्ति
नैतिकता की इन व्यापक दिशाओं के आधार पर ही व्रतों की रचना हुई है। जो व्यक्ति इन दिशाओं को नहीं समझता वह व्रतों को स्वीकार नहीं कर पाता। व्रतों की भाषा स्वीकार भी कर ले पर वह उनका पालन नहीं कर पाता।
नैतिकता भाषा की परिधि में समाहित नहीं हो सकती। नैतिकता एक भावना है जो असीम और अनन्त है। अहिंसा अणुव्रत की भावना समता या करुणा में अन्तर्निहित है। जो व्यक्ति करुणा को अच्छी प्रकार पकड़ लेता है, वह अनैतिक नहीं हो सकता । अनैतिकता का मूल आधार है- क्रूरता। जो व्यक्ति क्रूर होता है वही किसी का हनन कर सकता है, किसी को सता सकता है, किसी को लट सकता है और किसी का शोषण कर सकता है। संक्षेप में कहा जाए तो क्रूर व्यक्ति ही दूसरे के हितों की हत्या कर सकता है।
जिस व्यक्ति के हृदय में करुणा का स्रोत फूट पड़ता है, वह किसी के प्रति क्रूर नहीं बन सकता, किसी का अहित नहीं सोच सकता और असत् आचरण नहीं
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