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अहिंसा और अणुव्रतः सिद्धान्त और प्रयोग अधिक दूर जा सकता है और जो कम सफल होता है उसकी विकार से दूरी भी कम होती है। इस वस्तु-स्थिति के आधार पर ही व्रत के प्रारम्भिक या अल्प-अभ्यास को अणु कहा गया है। आत्मा और अपवित्रता के बीच लोहावरण सघन नहीं बना, दीवार मजबूत नहीं बनी, इसलिए उसका नाम अणुव्रत हो गया। व्रत और समाज-कल्याण
भारतीय मानस में व्रतों के संस्कार बहुत पुराने हैं । ये हृदय की स्वतंत्र भावना से लिए जाते हैं। कानून को तोड़ने में संकोच नहीं होता । व्रतों को तोड़ने में बहुत बड़ा पाप माना जाता है। व्रत न लें, यह पाप है; पर लेकर उसे तोड़ डालें, यह महापाप है- यह यहां की सामान्य धारणा है।
लोग कहते हैं- इतने महर्षि हुए, व्रतों का जी-भर उपदेश दिया पर बना क्या? अनैतिकता बढ़ी है, कम नहीं हुई। सोचने का अपना-अपना दृष्टिकोण है। हमें तो लगता है कि व्रतों से जो हो सकता है, वह हुआ है । जो व्रतों से नहीं हो सकता, उसकी आशा हम उनसे क्यों करें ?
लोग व्रतों से समाज की व्यवस्था चाहते हैं। हमारा विश्वास यह है कि व्रत समाज को व्यवस्था नहीं दे सकते। व्रत हृदय की पूर्ण स्वतंत्रता और पवित्रता के प्रतीक हैं । व्यवस्था में दबाव होता है। व्रत आत्मा का धर्म है और व्यवस्था है सामूहिक जीवन की उपयोगिता। व्रत अपरिवर्तित रहा है और व्यवस्था देशकाल के परिवर्तन के साथ परिवर्तित होती रही है। जो लोग व्यवस्था की दृष्टि से व्रतों का मूल्य आंकते हैं, उनकी धारणा में व्रत असफल रहे हैं । व्रतों के आचरण से समाज की भोग-वृत्ति पर बहुत अंकुश रहा है। हिंसा को खुलकर खेलने का अवसर नहीं मिला। इस दृष्टि से देखें तो व्रत समाज की आत्मा के प्रेरक रहे हैं। अणुव्रत नया तत्त्व है या प्राचीन
व्रत नये नहीं हैं। उनका संकलन नंया है। वर्तमान की समस्याओं के संदर्भ में जिन व्रतों की अपेक्षा है, उन्हें अणुव्रत में संकलित किया गया है।
व्रत शब्द का प्रयोग वैदिक, जैन और बौद्ध- तीनों परम्पराओं में मिलता है। अणुव्रत का प्रयोग पहले-पहल जैन आगमों में हुआ है। जिन्होंने अपवाद और आपद्-धर्म की छूट से रहित अहिंसा का आचरण करना चाहा, उनके अहिंसा धर्म को महाव्रत कहा गया। बिना प्रयोजन नहीं मारूंगा, निपराध को नहीं मारूंगा, संकल्पपूर्वक नही मारूंगा- इस प्रकार अपवाद और आपद्-धर्मपूर्वक जिन्होंने अहिंसा का आचरण किया, उनका अहिंसा-धर्म अणुव्रत कहलाया। मुनि का धर्म महाव्रत और सामाजिक व्यक्ति का धर्म अणुव्रत कहलाया।
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