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________________ 90 अहिंसा और अणुव्रतः सिद्धान्त और प्रयोग व्यक्तियों को करना है तो वह कार्य पूरा नहीं हो पाएगा। प्रत्येक व्यक्ति सोचेगायह कर लेगा, वह कर लेगा। कार्य अधूरा ही रह जाएगा। कम्यून का दोष एक पौराणिक कहानी है चक्रवर्ती के विमान को सोलह हजार देवता उठाकर ले जा रहे थे। एक ने सोचा- मैं अकेला छोड़ दूंगा तो क्या फर्क पड़ेगा। पन्द्रह हजार नौ सौ निन्यानवें शेष हैं । जब एक सोचता है तो दूसरा क्यों नहीं सोच सकता? दूसरे ने भी सोचा, तीसरे ने भी वैसा ही सोचा। सबने एक जैसी ही बात सोची और विमान को एक साथ छोड़ दिया। विमान नीचे समुद्र में जा गिरा। यह समूहवाद का, कम्यून का एक दोष है। राजा ने आदेश दिया- नवनिर्मित तालाब को दूध से भरना है। प्रत्येक नागरिक इसमें एक-एक लोटा दूध डाले। एक व्यक्ति ने सोचा- इतना बड़ा नगर है। इतने दूध डालेंगे। दूध के लाखों लोटों से तालाब भर जाएगा। मेरा एक पानी का लोटा गिर जाएगा तो क्या पता चलेगा। पानी तो दूध में ऐसे ही मिलाया जाता है। प्रात:काल हुआ। राजा और मंत्री इस आशा के साथ तालाब पहुंचे कि एक नई बात होगी, राज्य का तालाब दूध से भरा हुआ मिलेगा। पानी से भरा तालाब देख कर राजा निराश हो गया। एक व्यक्ति का विचार समग्र जनता में सक्रांत हो गया। तालाब में एक भी लोटा दूध का नहीं गिरा। वैयक्तिता : व्यक्तिवाद यह समूहवाद की समस्या है। व्यक्तिगत आकर्षण के बिना काम करने की प्रेरणा नहीं जागती। इसलिए वैयक्तिकता का मूल्य भी हम कम नहीं कर सकते। एक ओर व्यक्तिगत स्वतंत्रता और व्यक्तिगत प्रेरणा का प्रश्न है तो दूसरी ओर व्यक्तिवाद एक समस्या है। प्रत्येक व्यक्ति स्वयं को ही भरना चाहता है। दूसरे की चिंता ही नहीं करता। इस व्यक्तिवाद के आधार पर शोषण को बढ़ावा मिलता है। दोनों ओर समस्या है। सापेक्ष स्वामित्व इस दोहरी समस्या का एक समाधान है। आध्यात्मिक सापेक्षवाद अध्यात्म के क्षेत्र में कहा गया है- यदि तुम धार्मिक बनना चाहते हो, आध्यात्मिक बनना चाहते हो तो हिंसा को छोड़ो। हिंसा को छोड़ने का. अर्थ हैप्रत्येक प्राणी की अपेक्षा रखो, निरपेक्ष होकर मत रहो। क्रूर होकर मत चलो। जब यह सिद्धांत जीवनगत होगा तो प्रत्येक वस्तु के स्वामित्व की सीमा की बात स्वतः फलित हो जाएगी। एक आध्यात्मिक व्यक्ति या मुनि को पांच रोटियां मिली है। उन रोटियों को लाने वाला वह अकेला है और उसके चार साथी और हैं तो स्वामित्व की सीमा होगी। यह नहीं हो सकता है कि मैं लाया हूं तो मेरा ही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003061
Book TitleAhimsa aur Anuvrat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni, Anand Prakash Tripathi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size12 MB
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