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________________ अहिंसा और शान्ति ___ यह अपेक्षा अध्यात्मवाद की सापेक्षता है। मुनि जीवों के प्रति निरपेक्ष नहीं हो सकता। निरपेक्ष होने का अर्थ है- क्रूर होना, निर्दयी होना। मुनि निरपेक्ष नहीं, सापेक्ष होता है इसलिए वह जीवों की हिंसा करना नहीं चाहता और कराना भी नहीं चाहता। सामाजिक समस्या और सापेक्षता सामाजिक समस्या को सुलझाने में सापेक्षता महत्त्वपूर्ण सूत्र है । सापेक्षता होती है तो शोषण नहीं हो सकता। सापेक्षता होती है तो अपराध नहीं हो सकता, सापेक्षता होती है तो हिंसा नहीं हो सकती, युद्ध नहीं हो सकता। ये सारे कार्य निरपेक्षता के कारण किए जाते हैं। जब व्यक्ति निरपेक्ष हो जाता है तब वह सोचता है कि कोई कुछ भी करे मुझे क्या लेना-देना । बहुत सारे लोग यही कहते हैं कि मुझे प्रचुर सामग्री मिल गई। दूसरे को मिले या न मिले उससे मुझे क्या ? कोई मरे या जीए- मुझे क्या लेना देना। यदि पड़ोसी भूखा है तो वह अपने कर्म भोगे, मैं उसकी चिंता क्यों करूं । यह निरपेक्ष बात है। एक समाज का व्यक्ति समाज से निरपेक्ष होकर इस प्रकार का चिंतन करता है तो आर्थिक समस्या कभी सुलझाई नहीं जा सकती। आर्थिक जीवन का बोझ कभी हल्का नहीं हो सकता। क्षमता : स्वामित्व मैंने आर्थिक जीवन के जिन दस पहलुओं की चर्चा की, उनमें सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाला पहलू है- स्वामित्व। जब तक स्वामित्व को सापेक्ष नहीं बनाया जाएगा, आर्थिक समस्या का समाधान नहीं हो सकेगा। उपार्जन करना व्यक्ति की अपनी एक विशेषता है। किसी आदमी में क्षमता है, वह बहुत धन कमा लेता है। एक आदमी में व्यावसायिक बुद्धि नहीं है, वह धन नहीं कमा सकता। उपार्जन की क्षमता का होना तथा न होना व्यावसायिक योग्यता या अन्य कारणों पर निर्भर करता है। किन्तु स्वामित्व का होना- यह बिलकुल दूसरा प्रश्न है। इस प्रश्न पर सामाजिक और आध्यात्मिक- दोनों दृष्टियों से विचार किया गया। इच्छा-परिमाण : अर्थ की सीमा भगवान् महावीर ने एक व्रत दिया- इच्छा-परिमाण। इच्छा का परिमाण करो, सीमा करो। इच्छा-परिमाण का अर्थ है- परिग्रह का परिमाण, आर्थिक जीवन की सीमा। स्वामित्व के सीमांकन का यह सूत्र अध्यात्म के क्षेत्र से उद्भूत हुआ है। अर्थ की सीमा- साम्यवाद का मूल सूत्र रहा है । साम्यवाद ने प्रारंभ में तो व्यक्तिगत स्वामित्व को मान्य ही नहीं किया। किन्तु आदमी का स्वार्थ के प्रति बड़ा आकर्षण होता है। वह स्वार्थ छोड़ना नहीं चाहता। जहां समूह की बात आती है, कम्यून की बात आती है, कार्य में व्यवधान आ जाता है। एक कार्य दस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003061
Book TitleAhimsa aur Anuvrat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni, Anand Prakash Tripathi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size12 MB
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