SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 205
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६८ संस्कृति के दो प्रवाह दोनों हाथों को फैला उनसे सिर को पकड़ कर किया जाता है। ११. हस्तिशुण्डि---एक पैर को संकुचित कर दूसरे पैर को उस पर फैला कर, हाथी की सुंड के आकार में स्थापित कर बैठना।' १२. गोनिषद्या-दोनों जंघाओं को सिकोड़ कर गाय की तरह बैठना। १३. कुक्कुटासन-पद्मासन कर दोनों हाथों को दोनों ओर जांघ और पिंडलियों के बीच डाल दोनों पंजों के बल उत्थित पद्मासन की मुद्रा में होना। यन स्थानयोग सो कर किए जाने वाले स्थानों को 'शयन स्थानयोग' कहा जाता है। वे इस प्रकार हैं (१) लगण्डशयन-वक्र-काष्ठ की भांति एड़ियों और सिर को भूमि से सटा कर शेष शरीर को ऊपर उठा कर सोना । (२) उत्तानशयन-सीधा लेटना। शवासन में हाथ-पांव अलग हते हैं, परन्तु इसमें दोनों पांव मिले रह कर दोनों हाथ बगल में रहते हैं। (३) अधोमुखशयन--औंधा लेटना । (४) एकपार्वशयन-दाई और बाईं करवट लेटना। एक पैर को संकुचित कर दूसरे पैर को उसके ऊपर से ले जाकर फैलाना और दोनों हाथों को लम्बा कर सिर की ओर फैलाना। (५) मृतकशयन---शवासन । (६) ऊर्ध्वशयन-~ऊंचा होकर सोना। (७) धनुरासन---पेट के बल सीधा लेट, दोनों पैरों को ऊपर की गोर उठा, दोनों हाथों से उन्हें पकड़ लेना। १. (क) मूलाराधना, ३।२५४, विजयोदया, वृत्ति : हस्तिसुंडी--हस्तिहस्तप्रसारण मिव एक पादं प्रसार्यासनम् ।। (ख) मूलाराधना दर्पण : हस्तिसुंडी-हस्तिहस्तप्रसारणमिव एक पादं संकोच्य तदुपरि द्वितीयं पादं प्रसार्यासनम् । २. मूलाराधना, ३।२२५ : ....... . 'उड्ढमाईय लगंडसायीय । उत्ताणोमच्छिय एगपाससाई य मडयसाई य ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003060
Book TitleSanskruti ke Do Pravah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy