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जैन धर्म : हिन्दुस्तान के विविध अंचलों में
१५१ सम्भवतः सम्प्रति के बाद ही स्थिर हुई होगी।
सम्राट् सम्प्रति को,भरत क्षेत्र के तीन खण्डों का अधिपति कहा गया है। जयचन्द्र विद्यालंकार ने लिखा है- “सम्प्रति को उज्जैन में जैन आचार्य सहस्ती ने अपने धर्म की दीक्षा दी। उसके बाद सम्प्रति ने जैन धर्म के लिए वही काम किया जो अशोक ने बौद्ध धर्म के लिए किया था। 'चाहे चन्द्रगुप्त के और चाहे सम्प्रति के समय में जैन धर्म की बुनियाद तामिल भारत के नए राज्यों में भी जा जमी, इसमें संदेह नहीं। उत्तर पश्चिम के अनार्य-देशों में भी सम्प्रति के समय जैन-प्रचारक भेजे गए और वहां जैन साधुओं के लिए अनेक विहार स्थापित किए । अशोक और सम्प्रति दोनों के कार्य से आर्य संस्कृति एक विश्व-शक्ति बन गई और आर्यावर्त का प्रभाव भारतवर्ष की सीमाओं के बाहर तक पहुंच गया। अशोक की तरह उसके पौत्र ने भी अनेक इमारतें बनवाइ । राजपूताना की कई जैन रचनाएं उसके समय की कही जाती हैं। कुछ विद्वानों का अभिमत है कि जो शिलालेख अशोक के नाम से प्रसिद्ध हैं, वे सम्राट् सम्प्रति ने लिखवाए थे। सुप्रसिद्ध ज्योतिर्विद् श्री सूर्यनारायण व्यास ने एक बहुत खोजपूर्ण लेख द्वारा यह प्रमाणित किया है कि सम्राट अशोक के नाम के लेख सम्राट् सम्प्रति के हैं।'
सम्राट अशोक ने शिला-लेख लिखवाए हों और उन्हीं के पौत्र तथा उन्हीं के समान धर्म-प्रचार-प्रेमी सम्राट् सम्प्रति ने शिलालेख न लिखवाए हों, यह कल्पना नहीं की जा सकती। एक बार फिर सूक्ष्म-दष्टि से अध्ययन करने की आवश्यकता है कि अशोक के नाम से प्रसिद्ध शिलालेखों में कितने अशोक के हैं और कितने सम्प्रति के ? बंगाल
__ राजनीतिक दृष्टि से प्राचीनकाल में बंगाल का भाग्य मगध के साथ जुड़ा हुआ था । नन्दों और मौर्यों ने गंगा की उस निचली घाटी पर अपना स्वत्व बनाए रखा। कुषाणों के समय में बंगाल उनके शासन से बाहर रहा, परन्तु गुप्तों ने उस पर अपना अधिकार फिर स्थापित किया। गुप्त साम्राज्य के पतन के पश्चात् बंगाल में छोटे-छोटे अनेक राज्य उठ खड़े हुए।
१. भारतीय इतिहास की रूपरेखा, जिल्द २, पृ० ६६६-६६७ । २. जैन इतिहास की पूर्व पीठिका और हमारा अभ्युत्थान, पृ० थ६ ।
३. नागरी प्रचारिणी। ___४. प्राचीन भारत का इतिहास, पृ० २६५ ।
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