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संस्कृति के दो प्रवाह मुनि कल्याणविजयजी के अनुसार प्राचीनकाल में बंग शब्द से दक्षिण बंगाल का ही बोध होता था, जिसकी राजधानी 'ताम्रलिप्ति' थी, जो आजकल तामलुक नाम से प्रसिद्ध है। बाद में धीरे-धीरे बंगाल की सीमा बनी और वह पांच भागों में भिन्न-भिन्न नामों से पहिचाना जाने लगा–बंग (पूर्वी बंगाल), समतट (दक्षिणी बंगाल), राढ अथवा कर्ण सुवर्ण (पश्चिमी बंगाल), पुण्ड्र (उत्तरी बंगाल), कामरूप (आसाम)।
भगवान् महावीर वज्रभूमि (वीर) में गए थे। उस समय वह अनार्य प्रदेश कहलाता था। उससे पूर्व बंगाल में भगवान् पार्श्व का धर्म ही प्रचलित था। वहां बौद्ध धर्म का प्रचार जैन धर्म के बाद में हुआ। वैदिक धर्म का प्रवेश तो वहां बहुत बाद में हुआ था। ई० स० ६८६ में राजा आदिसूर ने नैतिक धर्म के प्रचार के लिए पांच ब्राह्मण निमन्त्रित किए थे।
भगवान् महावीर के सातवें पट्टधर श्री श्रुतकेवली भद्रबाहु पौण्ड्रवर्धन (उत्तरी बंगाल) के प्रमुख नगर कोट्टपुर के सोमशर्मा पुरोहित के पुत्र थे।'
उनके शिष्य स्थविर गोदास से गोदास गण का प्रवर्तन हुआ । उसकी चार शाखाएं थीं
१. तामलित्तिया।
२. कोडिवरिसिया। ___३. पुंडवद्धणिया (पोंडवद्धणिया)।
४. दासीखब्बडिया।
तामलित्तिया का सम्बन्ध बंगाल की मुख्य राजधानी ताम्रलिप्ति से है। कोडिवरिसिया का सम्बन्ध राढ की राजधानी कोटिवर्ष से है। पोंडवद्धणिया का सम्बन्ध पौंड-उत्तरी बंगाल से है। दासीखब्बडिया का सम्बन्ध खरवट से है । इन चारों बंगाल शाखाओं से बंगाल में जैन धर्म के १. श्रमण भगवान् महावीर, पृ० ३८६ । २. बंगला भाषार इतिहास, पृ० २७ :
आसीत् पुरा महाराज, आदिशूरः प्रतापवान् ।
आनीतवान् द्विजान् पंच, पंचगोत्रसमुद्भवान् । ३. भद्रबाहु चरित्र, ११२२-४८।। ४. पट्टावली समुच्चय, प्रथम भाग, पृ० ३,४।
थेरेहिन्तो गोदासेहितो कासवगुत्तेहितो इत्थं णं गोदासगणे नामं गणे निग्गए, तस्स णं इमाओ चत्तारी साहाओ एवमाहिज्जंति, तंजहा-कामलित्तिया १, कोडिवरिसिया २, पुंड्रवद्धणिया (पोंडवद्धणिया) ३, दासीखब्बडिया ४ ।
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