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संस्कृति के दो प्रवाह अग्नि और वायु की गति अभिप्रायपूर्वक नहीं होती, इसलिए वे केवल गमन वाले त्रस हैं। द्वीन्द्रिय आदि अभिप्रायपूर्वक गमन करने वाले अस हैं। अग्नि और वायु
अग्नि और वायु दोनों दो-दो प्रकार के होते हैं-सूक्ष्म और स्थूल । सूक्ष्म जीव समूचे लोक में व्याप्त रहते हैं और स्थूल जीव लोक के अमुक-अमुक भाग में हैं।' स्थूल अग्निकायिक जीवों के अनेक भेद होते हैं, जैसे-अंगार, मुर्मुर, शुद्ध अग्नि, अचि, ज्वाला, उल्का, विद्युत् आदि।'
स्थूल वायुकायिक जीवों के भेद ये हैं-(१) उत्कलिका, (२) मण्डलिका, (३) धनवात, (४) गुञ्जावात, (५) शुद्धवात और (६) संवर्तकवात ।' अभिप्रायपूर्वक गति करने बाले त्रस
जिन किन्हीं प्राणियों में सामने जाना, पीछे हटना, संकुचित होना, फैलना, शब्द करना, इधर-उधर जाना, भयभीत होना, दौड़ना-ये क्रियाएं हैं और आगति एवं गति के विज्ञाता हैं, वे सब त्रस हैं ।
इस परिभाषा के अनुसार त्रस जीवों के चार प्रकार हैं-(१) द्वीन्द्रिय, (२) त्रीन्द्रिय, (३) चतुरिन्द्रिय और (४) पंचेन्द्रिय । ये स्थल ही होते हैं, इनमें सूक्ष्म और स्थूल का विभाग नहीं है। द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, और चतुरिन्द्रिय जीव सम्मूर्च्छनज ही होते हैं। पंचेन्द्रिय जीव सम्मूर्च्छनज और गर्भज-दोनों प्रकार के होते हैं। गति की दष्टि से पंचेन्द्रिय चार प्रकार के हैं- (१) नैरयिक, (२) तिर्यञ्च, (३) मनुष्य और (४) देव । पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च तीन प्रकार के होते हैं-(१) जलचर, (२) स्थलचर और (३) खेचर । ___जलचर सृष्टि के मुख्य प्रकार मत्स्य, कच्छप, ग्राह, मगर और शुंशुमार आदि हैं।' . १. उत्तराध्ययन, ३६१११,१२० । २. वही, ३६।१००,१०६ । ३. वही, ३६।११८-११६ । ४. दशवकालिक, ४ सूत्र ६ । ५. उत्तराध्ययन, ३६।१५६ । ६. वही, ३६।१७१। ७. वही, ३६।१७२।
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