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________________ तस्वविद्या १२१ पटल तक के आठ प्रकार स्पष्ट रूप से माने हैं । गोमेदक से लेकर शेष सब चौदह प्रकार होने चाहिए, किन्तु अठारह होते हैं (उत्तराध्ययन, ३६।७३-७६) । इनमें से चार वस्तुओं का दूसरों में अन्तर्भाव होता है । वृत्तिकार इस विषय में पूर्णरूपेण असंदिग्ध नहीं हैं कि किसमें किसका अन्तर्भाव होना चाहिए ।' स्थूल जल (१) शुद्ध उदक, (२) ओस, (३) हरतनु, (४) कुहरा और (५) हिम। स्थूल वनस्पति स्थूल वनस्पति के दो प्रकार हैं - ( १ ) प्रत्येक शरीरी' और ( २ ) साधारण शरीरी' ।' जिसके एक शरीर में एक जीव होता है, वह 'प्रत्येक शरीरी' कहलाती है। जिसके एक शरीर में अनंत जीव होते हैं, वह 'साधारण शरीरी' कहलाती है । आदि । 'प्रत्येक शरीरी' वनस्पति के बारह प्रकार हैं(१) वृक्ष, ( (४) लता, (७) लतावलय, (१०) जलज. (२) गुच्छ, (५) वल्ली, (८) पर्वग, (३) गुल्म, ( (११) औषधितृण और ( १२ ) हरितकाय । * 'साधारण शरीरी' वनस्पति के अनेक प्रकार हैं; जैसे - कन्द, मूल (६) तृण, (६) कुहुण, स सृष्टि स सृष्टि के छह प्रकार हैं (१) अग्नि, (२) वायु, (३) द्वीन्द्रिय, , १. उत्तराध्ययन बृहद्वृत्ति पत्र ६८६ : इह च पृथिव्यादयश्चतुर्दश हरिताला - दयोऽष्टौ गोमेज्जकादयश्च क्वचित्कस्यचित्कथंचिदन्तर्भावाच्चतुर्दशेत्यमी मीलिताः षट्त्रिंशद् भवन्ति । २. उत्तराध्ययन, ३६।८५ । ३. वही, ३६।६३ । ४. वही, ३६ ९४, ९५ । ५. वही, ३६६६,६६ । ६. वही, ३६।१०७,१२६ । (४) त्रीन्द्रिय, (५) चतुरिन्द्रिय और (६) पंचेन्द्रिय | " Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003060
Book TitleSanskruti ke Do Pravah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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