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संस्कृति के दो प्रवाह (१) कृष्ण (काली), (२) नील (नीली), (३) लोहित (लाल), (४) हारिद्र (पीली), (५) शुक्ल (श्वेत), (६) पाण्डु (धूमिल, भूरी), तथा (७) पनकमृतिका (अतिसूक्ष्म रज)।' यहां ये भेद अत्यन्त वैज्ञानिक हैं । प्रज्ञापना में भी मृदु पृथ्वी के ये सात प्रकार प्राप्त हैं । ____ कठिन पृथ्वी-भूतल-विन्यास और करंबोपलों को छत्तीस भागों में विभक्त किया गया है--
१. शुद्ध पृथ्वी १६. अंजन २. शर्करा
२०. प्रवालक-मंगे के समान रंग ३. बालुका--बलुई
वाला' ४. उपल-कई प्रकार की २१. अभ्रबालुका-अभ्रक की बालु
शिलाएं और करंबोपल २२. अभ्रपटल-अभ्रक ५. शिला
२३. गोमेदक-वैडूर्य की एक जाति ६. लवण
२४. रुचक-मणि की एक जाति ७. ऊष-नौनी मिट्टी २५. अंक-मणि की एक जाति ८. अयस्-लोहा २६. स्फटिक १. ताम्र-तांबा
२७. मरकत-पन्ना १०. अपु-जस्त २८. भुजमोचक-मणि की एक जाति ११. सीसक-सीसा २६. इन्द्रनील-नीलम १२. रूप्य-चांदी २०. चन्दन-मणि की एक जाति १३. सुवर्ण-सोना ३१. पुलक-मणि की एक जाति १४. वज्र हीरा ३२. सौगन्धिक-माणि की एक जाति १५. हरिताल
३३. चन्द्रप्रभ-मणि की एक जाति १६. हिंगुल
३४. वैडूर्य १७. मनःशीला-मैनसिल ३५. जलकान्त-मणि की एक जाति १८. सस्यक-रत्न की ३६. सूर्यकान्त-मणि की एक जाति - एक जाति
वृत्तिकार के अनुसार लोहिताक्ष और मसारगल्ला क्रमशः स्फटिक और मरकत तथा गेरुक और हंसगर्भ के उपभेद हैं।' वृत्तिकार ने शुद्ध पृथ्वी से लेकर वज्र तक के चौदह प्रकार तथा हरिताल से लेकर अभ्र १. उत्तराध्ययन, ३६१७२ । २. कौटलीय अर्थशास्त्र, ११॥३६ । १. उत्तराध्ययन बहवृत्ति, पत्र ६८६ ।
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