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आया, कायोत्सर्ग किया, तनाव मिट गया, यह सामयिक उपचार है। भेदविज्ञान सामयिक उपचार नहीं है, यह तनाव की जड़ पर प्रहार है, स्थायी उपचार है।
ज्ञाता द्रष्टा भाव का विकास तनाव मुक्ति का दूसरा उपाय है ज्ञाता-द्रष्टाभाव का विकास । घटना को जानें, घटना को भोगें नहीं। घटना को जानना एक बात है, भोगना दूसरी बात है। 'ज्ञानी जानाति, अज्ञानी भुक्ते' ज्ञानी जानता है, अज्ञानी भोगता है। बहुत बड़ा अन्तर है। जो घटना को जानता है, पर घटना के साथ-साथ बहता नहीं, वह कभी दुःखी नहीं होगा। बहुत सारे लोग ऐसे होते हैं, जो घटना को भोगने लग जाते हैं। किसी की मृत्यु हुई। उससे कोई संबंध नहीं है लेकिन दूसरो को रोता हुआ देख वे भी रोने लग जाते हैं। बडे-बड़े लोग इस तरह प्रवाह के साथ बहने वालों में हैं।
बर्नाडशा नाटक देख रहे थे। नाटक में एक सीन खलनायक का था। परदे पर दुराचार का दृश्य प्रस्तुत हुआ। बर्नाडशा से रहा नहीं गया, तत्काल आगे बढ़े और एक चांटा जड़ दिया। वह कोई साक्षात् घटना तो नहीं थी, लेकिन घटना के साथ आदमी बह जाता है।
(जानना और भोगना-इस रेखा को समझें। हमारा अभ्यास हो ज्ञाता-द्रष्टाभाव का। इसकी साधना कठिन है। गहन अभ्यास साध्य है किन्तु इसकी साधना हो जाए तो फिर तनाव का प्रश्न नहीं उठेगा। एक व्यक्ति ने कहा-महाशय ! अमुक आदमी ने आपकी बड़ी कटु आलोचना की। उसने की या नहीं, इसका कोई मतलब नहीं है। किन्तु इसे सुनते ही मन तनाव से भर गया और इतना तनाव बढ़ा कि उसके प्रति शत्रुता का भाव पैदा हो गया। ऐसा इसलिए होता है कि हम ज्ञाता, द्रष्टा नहीं हैं, भोक्ता हैं। व्यक्ति हर बात को भोग लेता है, तनाव पैदा हो जाता है। उसने इस बात की जांच की तो पता चला, वह बात झूठी थी। हम किसी घटना की वास्तविकता को जानने का प्रयत्न नहीं करते। इसीलिए यह सारा होता है
तनाव-विसर्जन : ७७
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