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________________ विश्राम कह सकते हैं। यह निवृत्ति भीतर की ओर ले जाएगी। केवल विश्राम ही नहीं देगी, वृत्तियों को भी शान्त करेगी। प्रवृत्ति और निवृत्ति का संतुलन, यह तनाव विसर्जन का पहला सूत्र है। प्रवृत्ति के साथ लैक्टिक एसिड पैदा होता है। हर प्रवृत्ति के साथ यह रसायन पैदा होता है। निवृत्ति करो, इसकी मात्रा कम हो जाएगी। कायोत्सर्ग करो, इसकी मात्रा कम हो जाएगी। कायोत्सर्ग की खोज अध्यात्म की ऐसी खोज है, जो जीवन में आने वाले तनावों का एक वास्तविक उपचार है। तनाव आया, कायोत्सर्ग किया, तनाव समाप्त। फिर तनाव आया, कायोत्सर्ग की प्रक्रिया अपनाई और तनाव समाप्त। एक भ्रान्ति अनेक लोग पूछते हैं-ध्यान की अवस्था में ऐसा अनुभव होता है, जैसे हम वीतराग बन गए हों। ध्यान पूर्ण कर काम में लगते हैं तो फिर वही अवस्था आ जाती है। यह एक भ्रान्ति है और इसको मिटाना जरूरी है। क्या एक घण्टा ध्यान कर हम वीतराग बन जाएंगे ? संवेग, आवेग और कषायों के इतने संस्कार हमारे भीतर भरे हुए हैं कि थोड़ी सी साधना कर हम वीतराग बन जाएंगे, ऐसी कल्पना करना ही मूर्खता है। हमने मात्र एक उपाय खोजा है, जिस उपाय से तनाव का विसर्जन किया जा सकता है। तनाव आए ही नहीं, इसके लिए दीर्घकालिक प्रक्रिया अपनानी होगी, स्थायी इलाज ढूंढ़ना होगा। ऐसा तनाव पैदा करने वाले कारणों को निरस्त करके ही किया जा सकता है और इसके लिए लम्बी साधना की जरूरत है। सामयिक उपचार : स्थायी उपचार मूल प्रश्न है-स्थायी उपाय क्या है, जिससे तनाव पैदा न हो ? इसका सबसे सुन्दर उपाय है कायोत्सर्ग के साथ होने वाला भेदविज्ञान । जितना भेदविज्ञान स्पष्ट होगा-पुद्गल अलग, आत्मा अलग, शरीर अलग, चेतन अलग-यह ज्ञान जितना स्पष्ट होगा, तनाव की जड़ पर उतना ही जोरदार प्रहार होगा, तनाव होना ही बन्द हो जाएगा। हम इस भेदरेखा को ठीक से समझें-तनाव ७६ : नया मानव : नया विश्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003059
Book TitleNaya Manav Naya Vishwa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages244
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
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